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१२. प्रतिवादके सम्बन्धमें टिप्पणी'

श्री वर्माने जोरसे प्रतिवाद किया, इसकी मुझे खुशी है। मैं मान लेता हूँ कि जबलपुरके वकील ही वहाँके असहयोग आन्दोलनका नेतृत्व कर रहे हैं। लेकिन मैं अपने इस कथनपर अटल हूँ कि जिस दिन में जबलपुर गया उस दिन वहाँ वकील-मण्डली-का एक भी सदस्य उपस्थित नहीं था। जिन दो युवकोंका मैंने हवाला दिया है, सारा इन्तजाम उन्हींके हाथमें था । वे जमींदारोंके बेटे हैं, यह बात बिलकुल सही है।आज वे मजबूरीके कारण सरकारसे सहयोग भी कर रहे हैं। जमींदार अपनी जमीनें सरकारको लौटा दें, ऐसा नारा अभीतक कांग्रेसने नहीं दिया है और शायद कभी देगी भी नहीं। ये युवक दूसरी जगहोंके जमींदारोंके चन्द बेटोंकी ही तरह राष्ट्रीय उत्थानमें शानदार हिस्सा ले रहे हैं और वकीलोंसे हर तरहका बढ़ावा पानेके हकदार हैं। जहांतक धनके मुकाबले बुद्धि द्वारा नेतृत्व करनेकी बात है, उसमें तो कोई दो रायें हो ही नहीं सकतीं। तथा यह तो मानना ही पड़ेगा कि अन्तमें मस्तिष्क नहीं हृदय ही राह सुझायेगा। संकटकी घड़ीमें तो बुद्धि नहीं चारित्रिक बल ही काम देता है और मेरा खयाल है कि उन नौजवानोंने चारित्रिक दृढ़ता दिखाई है। यदि कुछ विपरीत सामने आया तो मुझे अफसोस होगा ।

[ अंग्रेजीसे ]

यंग इंडिया, २०--४--१९२१

१३. भाषण : सूरतकी सभामें

२० अप्रैल, १९२१
 

महात्माजीन शामको तिलक मैदानमें आयोजित एक विशाल सभामें भाषण दिया। सभाम १५ से २० हजारतक लोग उपस्थित थे। उन्होंने उस दिनकी सभाके अत्यन्त व्यवस्थित और सुचारु प्रबन्ध के लिए सूरतके नागरिकोंको बधाई देते हुए कहा कि मुझे इस बातकी बहुत खुशी है कि प्रबन्धकी त्रुटियोंके बारेमें अपनी पिछली बातें दोहरानी नहीं पड़ीं। मुझे सूरत नगर व जिले द्वारा किये गये शानदार कामका ब्यौरा सुनकर भी प्रसन्नता हुई है।

१. गांधीजीने जवलपुरसे कटक जाते हुए एक भेंट दी थी जिसमें कहा गया था कि जबलपुरमें दो धनी व्यापारियोंके लड़के आन्दोलनको बड़ी कामयाबीके साथ चला रहे हैं और वहाँके वकील उसमें काफी दिलचस्पी नहीं ले रहे हैं। जबलपुरके वकील श्री ज्ञानचन्द वर्माने इस कथनका विरोध करते हुए जो पत्र लिखा था यह टिप्पणी उसके उत्तरमें है।