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२१९. हिन्दू-मुस्लिम एकता यह बात अब सबको विदित है कि जबतक हिन्दुओं तथा मुसलमानोंमें एकता स्थापित नहीं हो जाती, देश तबतक कोई निश्चित प्रगति नहीं कर सकता। इसमें भी कोई सन्देह नहीं है कि जिस सीमेंटसे ये दोनों जुड़े हैं वह अभी नर्म और गीला है। उनमें अभीतक पारस्परिक अविश्वास बना हुआ है। राष्ट्र के नेता इस बातको भली-भाँति मान गये हैं कि जबतक दोनों जातियाँ एक-दूसरीपर विश्वास करनेकी और मिलकर काम करनेकी आवश्यकता अनुभव नहीं करतीं तबतक भारत उन्नति नहीं कर सकता। यद्यपि जनसाधारणमें बहुत परिवर्तन हो गया है, परन्तु परिवर्तन अभीतक स्थायी नहीं है। अभीतक मुसलमान जनसाधारण स्वराज्यकी उतनी आवश्यकता नहीं मानते जितनी हिन्दू मानते हैं। सार्वजनिक सभाओंमें मुसलमान उतने नहीं आते जितने हिन्दू आते हैं। इसमें जबरदस्ती तो कुछ की नहीं जा सकती। मुसलमानोंमें राजनीतिक अभि- रुचि जगानेके लिए जितने समयकी आवश्यकता है [शायद] अभी उतना समय नहीं बीता। केवल एक वर्ष पूर्व ही मुसलमान कांग्रेसके कार्यमें सामूहिक रूपसे कोई भाग ही नहीं लेते थे। वस्तुतः यह एक आश्चर्य की बात है कि अब देशमें हजारों मुसलमान कांग्रेसके सदस्य बन गये । यह इतना कार्य ही भारी सफलताका सूचक है। परन्तु अभी तो बहुत काम करना है और मुख्यतः हिन्दुओंको करना है । अबतक जहाँ-कहीं भी मुसलमान उदासीन दिखाई देते हों वहीं वे उन्हें शामिल होनेका निम- न्त्रण दें। हिन्दुओंकी ओरसे बहुधा इस बातकी शिकायत सुनने में आती है कि मुसलमान न तो कांग्रेस-संगठनमें सम्मिलित होते हैं और न तिलक स्वराज्य-कोषमें चन्दा देते हैं। स्वाभाविक प्रश्न यह है कि क्या उन्हें शामिल होनेकी दावत दी जाती है? प्रत्येक जिलेमें हिन्दुओंको चाहिए कि वे अपने मुसलमान पड़ोसियोंको इस क्षेत्रमें लानेका विशेष प्रयत्न करें। जबतक हम एक-दूसरेको हीन या श्रेष्ठ समझेंगे तबतक हम लोगोंमें सच्ची समानता कभी कायम नहीं हो सकती। बराबरीके लोगोंमें किसीको हीन माननेकी गुंजाइश नहीं रहती। जहाँ मुसलमानोंकी संख्या कम हो वहाँ उन्हें अपनी अल्प- संख्याका या अपने भीतर शिक्षाको कमीका खयाल नहीं करना चाहिए। शिक्षाकी कमी शिक्षा प्राप्त करके पूरी की जानी चाहिए। अल्पसंख्यामें होना कई बार एक वरदान होता है। बहुसंख्या प्रायः प्रगतिमें बाधक सिद्ध हुई है। अन्ततः मुख्य प्रभाव चरित्रका ही पड़ता है। किन्तु मैंने यह लेख यह बताने के लिए नहीं लिखा है कि मुसलमान अपनी कमियाँ कैसे पूरी कर सकते हैं या उन्हें भविष्यमें क्या करना चाहिए। मेरा मुख्य उद्देश्य हमारे सामने इस समय जो प्रश्न उपस्थित है उसपर विचार करना है। बकरीद जल्दी ही आ रही है। इस अवसरपर हिन्दुओं और मुसलमानोंमें झगड़े कराने के जो प्रयत्न किये जायेंगे; उनको व्यर्थ करनेके लिए हमें क्या करना चाहिए? यद्यपि बिहारमें स्थिति बहुत-कुछ सुधर गई है; किन्तु फिर भी हम अभी उसकी ओरसे निश्चिन्त नहीं हो सकते । अति उत्साही और अधीर हिन्दू कुछ मामलोंमें Gandhi Heritage Portal