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भाषण : बम्बई में


है । इसके बाद उन्होंने श्री ललितसे स्वर्गीय लोकमान्यके सम्बन्ध में अपना गीत गानेकी प्रार्थना की।

सभामें भाषण देते हुए गांधीजीने कहा कि जिस कामके लिए हम यहाँ एकत्र हुए हैं वह पवित्र है । आज शामका हमारा कार्यक्रम काफी लम्बा है । [ इसलिए ] मैं आपका अधिक समय नहीं लूँगा ।

श्री तिलक लम्बे भाषण देनेके लिए प्रसिद्ध नहीं थे। वे बहादुरीके कामोंके लिए प्रसिद्ध थे । देश उनकी वक्तृत्व शक्तिके कारण उनको प्यार नहीं करता था । उनके समकालीन कुछ ऐसे व्यक्तियोंके नाम लिये जा सकते हैं जो भाषण-सज्जाकी दृष्टिसे अधिक अच्छे वक्ता माने जाते थे । इसलिए में आप लोगोंके सम्मुख लम्बा भाषण देकर आपका अधिक समय लेनेकी जरूरत नहीं समझता । में आपका ध्यान उनके कुछ उन अत्यन्त विशिष्ट गुणोंकी ओर दिलाऊंगा जिनकी बदौलत वे जनताके आदर्श बन गये थे • वे गुण जिनकी ऐसे राष्ट्रके लिए उस समय बहुत जरूरत है, जो एक ही सालके भीतर स्वराज्य पानेका बहुत जोरदार प्रयत्न कर रहा हो। आप उनके गुणोंका अनुकरण करके और उन्हें अपने जीवन में गूंथकर दिवंगत नेताको स्मृतिमें सच्ची श्रद्धांजलि अर्पित कर सकते हैं। एक महान् गुण जो देशने लोकमान्यमें देखा वह था उनकी निडरता। उनमें यह गुण इतना साफ झलकता था कि कुछ लोग तो उन्हें अशिष्ट कहने लगे थे। हम जानते हैं कि वे नौकरशाहीकी कड़ी आलोचना करनेसे कभी नहीं चूके। इसलिए नौकरशाहीका क्रोध भड़क उठा और उनपर अंग्रेजोंके खिलाफ नफरत पैदा करनेका आरोप लगाया गया। किन्तु में जानता हूँ कि यदि श्री तिलक नौकरशाहीकी आलोचना करनेमें कुछ उठा नहीं रखते थे तो वे उसके सदस्योंकी प्रशंसा करनेको भी, जब कभी वे मुनासिब समझते, तैयार रहते थे। मुझे याद है कि कल- कत्ताके पिछले अधिवेशनके अवसरपर जिसमें तिलक महाराज उपस्थित थे, उन्होंने एक हिन्दी सम्मेलनकी अध्यक्षता की। वे वहाँ कांग्रेस में छिड़े हुए गम्भीर वाद-विवादसे उठकर आये थे । परन्तु सम्मेलनके सामने उन्होंने बिना लिखा विद्वत्तापूर्ण धारावाहिक भाषण दिया। उन्होंने देशी भाषाओंकी सेवाओंके सम्बन्धमें अंग्रेजीके विद्वानोंकी प्रशंसा की। उन्होंने कहा कि भविष्यके इतिहास-लेखक उनकी सेवाओंकी कद्र करेंगे। तथापि इसका यह अर्थ नहीं कि अंग्रेज देशी भाषाओंको लाभ पहुँचानके लिए भी भारत आये थे, परन्तु फिर भी, जिन अनेक अंग्रेजोंने भारतीयोंकी अपनी भाषाओंकी कद्र करने में मदद की उनके प्रति भारत ऋणी है और उसे न मानना अनुचित होगा ।

उनका दूसरा महान् गुण, जिसकी देशको बहुत जरूरत थी, उनका आत्मबलिदान था। वे अपने देशकी सेवामें कभी पीछे नहीं रहे। इसके लिए उन्होंने कभी सौदा नहीं किया। उनके लिए आत्मत्याग हर्षका विषय था। गांधीजीने कहा कि मुझे उदाहरण देने की जरूरत नहीं है क्योंकि श्रोतृगण उनके बलिदानोंके उदाहरण मुझसे अच्छी तरह जानते हैं। तीसरा महान् गुण उनकी असीम सादगी था । श्री तिलकने