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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

अब ये सब बातें हो चुकी हैं। अब इस राष्ट्रीय धर्मके पुनरुद्धारके लिए एक करोड़ स्त्री-पुरुषों और एक करोड़ रुपयोंकी आवश्यकता है। सवाल चन्द चरखोंका नहीं, ६ करोड़ घरोंमें से प्रत्येकमें चरखेका प्रवेश करानेका है। सवाल भारतके लिए आवश्यक सारे कपड़ेका उत्पादन एवम् वितरण करनेका है। यह काम एक करोड़ रुपयोंसे नहीं हो सकता। यह तो तभी हो सकता है जब भारत १ करोड़ रुपया तथा १ करोड़ स्त्री-पुरुष जुटाये और साथ ही ३० जूनसे पहले-पहल २० लाख चालू चरखों-का २० लाख घरोंमें प्रवेश करा दे। और तब समझिये कि वह स्वराज्यके लिए लगभग तैयार है। क्योंकि इस प्रयाससे समूचे राष्ट्रमें उन सभी गुणोंका उद्भव हो जायेगा जो राष्ट्रको उत्तम, महान्, आत्मनिर्भर और अपने आपमें पूर्ण बनाते हैं। जब हमारा राष्ट्र अपने स्वतःस्फूर्त प्रयत्नसे विदेशी कपड़ेका बहिष्कार पूर्ण कर लेगा तब वह स्वराज्यके योग्य बन जायेगा। मैं वचन देता हूँ कि उस स्थितिमें भारतीय नगरों-में खड़े ये बड़े-बड़े किले भारतकी स्वतन्त्रताके लिए खतरा नहीं रह जायेंगे बल्कि भारतीय बच्चोंके खेलकूदके स्थान बन जायेंगे। तब हमारे और अंग्रेजोंके बीचके सम्बन्ध शुद्ध हो जायेंगे। तब लंकाशायरके मतदाता हमें हानि नहीं पहुँचायेंगे और तब यदि अंग्रेज चाहें तो भारतमें भारतको लाभ पहुँचाने और सच्चे दिलसे उसकी मदद करने-के एकमात्र ध्येयको लेकर मित्रों और बराबरीवालोंकी तरह रह सकते हैं। असहयोग एक ऐसा आन्दोलन है जिसका उद्देश्य अंग्रेजोंसे यह अनुरोध करना है कि वे या तो हमारे साथ सम्मानपूर्ण शर्तोपर सहयोग करें या फिर हमारा देश छोड़कर चले जायें। यह आन्दोलन हम दोनोंके सम्बन्धोंको शुद्ध आधारपर स्थापित करनेके लिए है, अपने आत्मसम्मान और अपनी प्रतिष्ठाके अनुकूल उन्हें सुनिश्चित करनेके लिए है।

आन्दोलनका आप जो भी चाहे नाम रख लीजिये । आप उसे 'स्वदेशी और मद्य-निषेध' कह सकते हैं। मान लीजिये कि पिछले इन सारे महीनोंका प्रयत्न व्यर्थ गया है। मैं सरकार तथा नरम (माडरेट) दलके मित्रोंसे अनुरोध करता हूँ कि वे हाथकी कताईको देशव्यापी बनाने तथा मद्यपानको अपराध करार देनेमें राष्ट्रके साथ सहयोग करें। दोमें से किसी भी पक्षको इन दो आन्दोलनोंके परिणामोंके सम्बन्धमें अटकल लगानेकी कोई आवश्यकता नहीं। पेड़की पहचान उसके फलसे हो जायेगी ।

[ अंग्रेजीसे ]

यंग इंडिया, २०-४-१९२१