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क्योंकि व्यक्ति कर्मके निमित्त मात्र हैं । इसलिए मैं पूरा जोर लगाकर कहूँगा कि जोशीले लोग और साहसी व्यापारी उचित-अनुचितका विचार करें, और इस प्रकारके चित्र हटा लें जो उक्त भाई जैसे व्यक्तियोंकी धार्मिक भावनाओंको निस्सन्देह ठेस पहुँचाते हैं।

कराची के स्कूल

श्री जगतियानीने अपने स्कूल के बारेमें जो महत्त्वपूर्ण सफाई दी है, उसे इससे पहले प्रकाशित न करनेके लिए मुझे उनसे क्षमा माँगनी चाहिए। सच बात यह है कि लगा- तार यात्रापर रहने के कारण मुझे अपने सभी पत्रोंका उत्तर देने का समय नहीं मिला । बम्बई में मुझे जरा साँस लेनेका मौका मिला है और मैं जमा कामको निपटानेका प्रयत्न कर रहा हूँ । उनका पत्र मैं अभी-अभी देख पाया हूँ। उसका सम्बन्धित भाग इस प्रकार है :

स्कूलों के हिसाब-किताबकी गड़बड़के सम्बन्धमें एक पत्र 'यंग इंडिया 'में पहले ही प्रकाशित हो चुका है। मैं लेखकसे सहमत हूँ। में 'तिलकालय 'का प्रिंसिपल हूँ, जिसके बारेमें मेरे कुछ विरोधियोंने अफवाहें फैला रखी हैं। स्कूल मैंने 0पिछले नवम्बर अर्थात् अपने असहयोग में भाग लेनेके एक महीने बाद शुरू किया था। चूँकि खिलाफत समितिसे मुझे कोई सहायता नहीं मिल सकी, इसलिए मुझे व्यक्तिगत सहायता पर ही निर्भर रहना पड़ा। एक नये स्कूलको जमने में कुछ समय लगता है । किन्तु मेरे स्कूलके शुरूके ही दिनोंमें मेरी "मोटी तनख्वाह " के बारेमें अफवाहें शुरू हो गई थीं। जब कि सचाई यह है कि मैंने कोई तनख्वाह नहीं ली; बल्कि ३१ मई, १९२१ तक स्कूलको १,२०० रुपयेका घाटा हुआ है। जहाँतक धनका प्रश्न है, स्कूलका एक वित्त-बोर्ड है जिसके प्रधान श्री दुर्गादास बी० अडवानी हैं । बोर्डकी बैठक हुई और हिसाब-किताब, जिसकी जाँच समिति द्वारा नियुक्त एक पेशेवर मुनीमने की, पास किया गया। रिपोर्ट में हिसाब- किताबका विवरण भी दिया जायेगा। साधारण रूपसे यही विधि अपनाई भी जानी चाहिए थी । सार्वजनिक सहायता से चलनेवाली सभी शालाएँ इसी पद्धतिका अनुसरण करती हैं। उनसे यही अपेक्षा की जाती है कि वे समय-समयपर अपना आय-व्ययका लेखा प्रकाशित किया करें। इससे उन समाचारोंमें निहित अन्याय स्पष्ट हो जायेगा जिनपर आपके लेख आधारित हैं । वे समाचार स्पष्टतः व्यक्तिगत द्वेषका परिणाम हैं।

मैं पत्रका शेष भाग प्रकाशित नहीं कर रहा हूँ । उसका सम्बन्ध केवल स्थानीय और व्यक्तिगत मामलोंसे है । मैं नहीं समझता कि ऐसे मामलोंकी सार्वजनिक चर्चासे कोई लाभ है। हमें अपने अन्दर ऐसी क्षमता बढ़ानी चाहिए कि हम इस तरहकी छोटी-छोटी परेशानियोंको बरदाश्त कर सकें और जल्दी ही अपने प्रतिद्वद्वियोंसे सहमत हो सकें ।