पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 20.pdf/३६५

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१५५. पत्र: के. राजगोपालाचार्यको गामदेवी बम्बई ५ जुलाई, १९२१ प्रिय महोदय, आपका इसी २८ तारीखका पत्र मिला। आपने अपने पत्रमें जिस मामलेका उल्लेख किया है उसकी चर्चा में 'यंग इंडिया में जल्दी ही कर रहा हूँ। आपने जो सुझाव दिया है उसके लिए मैं आपको धन्यवाद देता हूँ। आपका सच्चा, मो० क० गांधी श्री के० राजगोपालाचार्य तिरुपति मद्रास राज्य अंग्रेजी पत्र (जी० एन० ५६६८) की फोटो-नकलसे । १५६. टिप्पणियाँ उत्तरदायित्वका आरम्भ 'तिलक स्वराज्य-कोष'को भारतने जो अभूतपूर्व समर्थन दिया, उससे प्रकट हो जाता है कि भारतको असहयोगके अपने नेताओंपर भरोसा है। क्या नेता अपने-आपको इस भरोसेके योग्य सिद्ध करेंगे? अनेक लोगोंने बड़ी उदारतासे दान दिया है, और सभीने यह सवाल पूछा है कि इस निधिका उपयोग किस प्रकार किया जायेगा। मैंने निस्संकोच यही उत्तर दिया है कि प्रान्तीय कांग्रेस कमेटियोंके नेता जिम्मेदार और परखे हुए व्यक्ति हैं। यदि हम इस कोषमें मिली पाई-पाईका लेखा-जोखा नहीं रखते और धनका उपयोग बुद्धिमानीसे नहीं करते तो हमें सार्वजनिक जीवनसे बाहर कर दिया जाना चाहिए। हमें याद रखना चाहिए कि गरीबसे-गरीब आदमियोंने अपनी शक्ति- भर दिया है। कई लोगोंने तो अपना सब-कुछ दे दिया है। धोबी, बढ़ई, लुहार, ईसाई, यहूदी, पारसी, सिख, जैन, मुसलमान और हिन्दू -- सभीने यथाशक्ति दिया है। १६ जूनतक, जब बम्बईमें संग्रहका काम आरम्भ हुआ, सारे भारतमें प्राप्त हुई धन राशि ३० लाख रुपये थी-- और शायद इतनी भी नहीं थी। मुझे विश्वास था जूनके अन्ततक बम्बईके अतिरिक्त दूसरे प्रान्तोंमें ही चालीस लाख रुपये इकट्ठे Gandhi Heritage Portal