पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 20.pdf/३३६

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३०६ सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय कर ले और इस प्रकार विदेशी आक्रमणोंके लिए दुर्भेद्य बन जाये और अपनी दो बड़ी-बड़ी आवश्यकताओं --खाद्य और वस्त्र-- के मामलेमें आत्मनिर्भर बन जाये। [अंग्रेजीसे] यंग इंडिया, २९-६-१९२१ १३९. चाय-बागानके एक अधिकारीका पत्र श्री गांधी तथा असहयोग आन्दोलनसे सम्बन्धित अन्य लोगोंके नाम पत्र: सज्जनो, क्या आपने कभी इस बातपर तनिक भी विचार किया है कि आपका असहयोग आन्दोलन भारतको किधर लिये जा रहा है? यदि अनुमति हो तो असमके बारेमें मैं कुछ कहूँ। आप जिन बुराइयोंको दूर करनेकी कोशिश कर रहे हैं, उन्हें दूर करने या दुरुस्त करने का उपाय असहयोग नहीं वरन् कानून है। सबसे पहले कानून और फिर अनिवार्य शिक्षा। असमके जो चाय-बागान यूरोपीयोंके नियन्त्रणमें हैं, उन सभी में काम करनेवाले कुलियोंकी यूरोपीय अधिकारी बहुत अच्छी तरह देखभाल करते हैं। पर मुझे खेदके साथ कहना पड़ता है कि आपके ही देशवासियोंमें इन बागानोंके कुलियोंसे नाजायज तरीकेसे पैसे ऐंठनेकी नामुनासिब प्रवृत्ति बहुत अधिक फैली हुई है। चाय- बागानोंमें काम करनेवालों को काफी अच्छी मजदूरी मिलती है। मेरे बागानमें काम करनेवाले पुरुषोंको औसतन १० रुपये ३ आने ८ पाई, स्त्रियोंको ६ रुपये १२ आने ८ पाई तथा बच्चोंको ४ रुपये १५ आने ९पाई मिलते हैं। (सितम्बर १९२० को सरकारी रिपोर्ट)। इसके अलावा असमके सभी चाय- बागानोंके कुलियोंको ईंधन तथा दवाई मुफ्त दी जाती है। उनका मुफ्त इलाज किया जाता है। मुफ्त रिहायशका इन्तजाम है; मवेशियोंको चरानेके लिए चरागाहकी मुफ्त व्यवस्था है। खेतीके लिए मुफ्त जमीन दी जाती है। अकाल पड़नेपर चावल बाजार-भावसे काफी कममें दिया जाता है। आप यह तो मानेंगे ही कि किसीके आगे थाली परोसकर रखी जा सकती है, लेकिन उसके मुंहमें जबरदस्ती कौर तो नहीं डाला जा सकता। उसी तरह आप किसी कुलीको कामपर तो लगा सकते हैं, लेकिन उसे काम करने के लिए मजबूर नहीं कर सकते; और कोई चाहे दुनियाके किसी भी धन्धेमें लगा हो, काम करना तो उसके लिए जरूरी ही है। चाय-बागानों में नफरीपर भी काम कराया जाता है। और जिन दिनों ज्यादा काम रहता है उन दिनों पुरुष आसानीसे एक दिनमें ८ से १० आने तक और स्त्री ४ से ६ आने तक कमा Gandhi Heritage Portal