पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 20.pdf/३३४

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१३८. चरखेका सन्देश 'इंडियन सोशल रिफॉर्मर' ने चरखेकी प्रशंसामें किसी पत्र-लेखककी एक टिप्पणी प्रकाशित की है। उसने अपनी टिप्पणीमें यह कामना की है कि आन्दोलनका संगठन ऐसे ढंगसे किया जाये कि कताई करनेवाले उससे उकता न जायें। श्री अमृत- लाल ठक्करने ('सवेंट ऑफ इंडिया' में प्रकाशित) अपनी एक उपयोगी टिप्पणीमें काठियावाड़में चल रहे अपने परीक्षणके बारेमें लिखा है। उन्होंने लिखा है कि किसान स्त्रियोंने चरखे अपना लिये हैं। इससे उनको उकताहट कभी नहीं होगी क्योंकि यह उनकी अपनी जीविकाका साधन है, और पहले वे इसकी आदी भी थीं। इसका चलन बन्द इसलिए हो गया था कि उनके काते हुए सूतकी कोई माँग ही नहीं रह गई थी। शहरी लोग यदि चरखेको एक फैशन या खब्तकी तरह अपनायें तो हो सकता है कि वे आगे चलकर उससे उकता जायें। चरखेके प्रति आस्था उन्हीं लोगोंकी रहेगी जो आज देशके लिए इस सबसे अधिक उपयोगी कार्य के लिए अपने अवकाशके कुछ घंटे लगाना अपना कर्तव्य मानते हों। कताई करनेवालों का तीसरा वर्ग स्कूली बच्चोंका है। राष्ट्रीय स्कूलोंमें चरखा चालू करनेके परीक्षणसे मुझे बड़े अच्छे परिणामोंकी आशा है। यदि राष्ट्रीय स्कूलोंमें चरखे चालू करनेका काम वैज्ञानिक ढंगसे ऐसे अध्यापकों द्वारा शुरू किया जाये जो चरखेको भारतके साढ़े सात लाख गाँवोंमें शिक्षा पहुँचानेका सबसे कारगर साधन मानते हों, तो फिर इससे उकताहट पैदा होनेका कोई खतरा नहीं रह जायेगा; और इतना ही नहीं उसके सहारे राष्ट्र नये-नये कर लगाये बिना और राजस्वके अनैतिक तरीके इस्तेमाल किये बिना ही जन-शिक्षाका खर्च जुटानेकी समस्या भी हल कर लेगा। 'इंडियन सोशल रिफॉर्मर' के पत्र-लेखकने सुझाया है कि चरखेपर बढ़िया किस्मका तैयार करनेकी कोशिश की जानी चाहिए। मैं उनको आश्वस्त करना चाहता हूँ कि यह काम शुरू भी हो गया है, लेकिन ढाकाकी मलमलकी तरहका बढ़िया निखार (फिनिश) या उससे कुछ कम महीन किस्मका सूत कातने में अभी कुछ समय तो लग ही जायेगा। हाथ-कताई अभी पिछले सितम्बरमें ही शुरू हुई थी और भारतको उसकी उपयोगितापर दिसम्बरमें ही विश्वास होने लगा था। यदि इसे ध्यानमें रखा जाये तो इसने अभीतक जितनी प्रगति की है वह बहुत काफी मानी जानी चाहिए। पत्र-लेखकने शिकायत की है कि हाथकते सूतकी बुनाई उतनी ही तेजीसे नहीं हो पाती। एक हदतक यह सही है। लेकिन इसका इलाज सिर्फ यह नहीं है कि करघोंकी संख्या बढ़ा दी जाये। इससे कहीं ज्यादा जरूरत इस बातकी है कि मौजूदा बुनकरोंको हाथका कता सूत इस्तेमाल करनेके लिए प्रेरित किया जाये। बुनाईका काम कताईकी अपेक्षा अधिक पेचीदा किस्मका है। कताईकी भाँति, बुनाई केवल एक अनुपूरक उद्योग नहीं है, वह अपने-आपमें जीविकाका एक सम्पूर्ण साधन है। इसीलिए वह कभी बन्द नहीं हुआ था। “भारतमें इतने काफी बुनकर और करघे मौजूद Gandhi Heritage Portal