पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 20.pdf/३२०

यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

१३४. तार : मदनमोहन मालवीयको बम्बई २८ जून, १९२१ पण्डित मदनमोहन मालवीय शिमला सरकारसे क्षमा मांगनेका मंशा तो था ही नहीं। यदि होता तो मैं स्पष्टतः वैसा कहता। भेंटका (दोनों पक्षों द्वारा) स्वीकृत विवरण प्रकाशित करने या गोपनीयतासे मुझे बरी किये जानेके लिए मैंने पिछले सप्ताह वाइसरायको पत्र लिखा था। [अंग्रेजीसे] बॉम्बे सीक्रेट एब्स्ट्रैक्ट्स, १९२१ १३५. टिप्पणियाँ अधिकारी तथा कर्मचारी वाइसराय द्वारा अहमदिया जमातको दिये गये उत्तरसे यह स्पष्ट है कि वे नौकर- शाहीके हाथमें खेल गये हैं। नौकरशाही बहुत चालाक, संगठित तथा पूर्णतः सिद्धान्त- हीन होती है। उन्होंने अधिकारियों तथा कर्मचारियोंका जिस तरह बचाव किया है, उससे जातीय समानताके अर्थका पता चल जाता है। यूरोपीय लोग भारतीयोंपर निःशंक होकर जुल्म करते हैं और करते रहें, इसमें वाइसरायको कोई असमानता नजर नहीं आती। मुझे पंजाबके एक मजिस्ट्रेट द्वारा दिये गये एक विलक्षण फैसलेकी याद आ रही है। उसने एक आयरिश सैनिक द्वारा एक निरीह भारतीय महिलाके साथ छेड़खानी किये जाने के मामले में अपनी कल्पना-बुद्धिका सहारा लेकर कुछ ऐसे कारण खोज निकाले जिनसे अपराध अपेक्षाकृत कम लगने लगे और फिर उसने उसपर केवल पचास रुपया जुर्माना करके यह समझ लिया कि न्यायकी माँग पूरी हो गई। परमश्रेष्ठ दैनिक पत्रोंको पढ़नेका कष्ट नहीं उठाते; वे यूरोपीयों द्वारा भार- तीयोंको अपमानित किये जानेके समाचारोंसे भरे रहते हैं। वे इस तथ्यसे अनभिज्ञ मालूम होते हैं कि ब्रिटिश अधिकारी रेलमें अपने डिब्बेमें भारतीय न्यायाधीशों-तक की उपस्थिति गवारा नहीं करते। वाइसराय कहते हैं, “मुझे पूरा विश्वास है कि इस कथनमें जरा भी सत्यता नहीं है कि ब्रिटिश अधिकारी जिन भारतीयोंके सम्पर्कमें आते १.देखिए " टिप्पणियाँ", १५-६-१९२१ और २९-६-१९२१ । Gandhi Heritage Porta