१५ अप्रैल, १९२१
जब मैं पहले-पहल बोरसद आया था तब मुझे सफलता नहीं मिली थी। लेकिन अब बोरसदमें जागृति आ गई है। जागृतिकी पहली निशानी यह है कि हममें सभाएँ आयोजित करनेकी, आयोजनोंमें व्यवस्था रखनेकी शक्ति आनी चाहिए। उसके लिए अनुशासन चाहिए। अग्नि अथवा जल-प्रपातको कुशलतापूर्वक नियन्त्रित किये बिना जैसे उपयोगमें नहीं लाया जा सकता उसी तरह अनुशासनके बिना जागृति भी व्यर्थ है। जागृतिकी पहली शर्त यह है कि हम जिस समय जहाँ हों उस स्थल और समयके धर्मको समझ लें।
३. भाषण: ताल्लुका परिषद्, हालोलमें
१६ अप्रैल, १९२१
मेरे लिए तो खादीका ही श्रृंगार, खादीका ही उपहार और खादीके ही तमगे होने चाहिए। मुझे जो वस्तु दी गई है उसमें स्वराज्यकी निशानी नहीं है। हमें आज ही स्वराज्य क्यों नहीं मिल जाता, इसका कारण इसमें देखा जा सकता है। अपनेआपको एक किसानके रूपमें, एक बुनकरके रूपमें और अब एक भंगीके रूपमें पहचाननेवाले व्यक्तिको आपने अध्यक्ष नियुक्त किया है और उसे दी है ऐसी थैली! यह न तो कागजों [नोटों] से भरी हुई है और न चाँदी अथवा सोनेसे ही भरी हुई है। आपने तो मुझे खाली थैली दी है और तिसपर दूसरा गुनाह यह है कि उसकी तमाम चीजें विदेशी हैं। वह विदेशी रंगमें रँगी हुई है, उसका सूत विदेशी है, रेशमका तागा विदेशी है; तो फिर इसमें स्वदेशी क्या है? मैं स्वदेशीका नायक होनेका दावा करता हूँ इसलिए उसकी परीक्षा करनेका गुण मुझमें होना चाहिए। मेरी स्वदेशीकी व्याख्या तो इतनी सुन्दर है कि अगर हम उसका पालन करें तो
१. गांधीजीकी यात्राके विवरणसे उद्धृत।
२. १९१८ में खेड़ा जिलेके संघर्षके दौरान। देखिए खण्ड १४।
३. गांधीजीको यात्राके विवरणसे उद्धृत। हालोल, गुजरातके पंचमहाल जिले में है। गांधीजीने परिषद्की अध्यक्षता की थी।
४. इसपर श्रोताओं में से किसीने बात काटते हुए कहा कि यह थैली स्वदेशी है। इसीके उत्तरमें गांधीजीने आगेके वाक्य कहे थे।