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१२६. पत्र : एस० आर० हिगनेलको

लैबर्नम रोड
गामदेवी
बम्बई
२४ जून [ १९२१ ]

प्रिय श्री हिगनेल[१],

मैंने कई बार परमश्रेष्ठके भाषण और अली भाइयोंके बारेमें [प्रकाशित] प्रेस-विज्ञप्ति के सम्बन्ध में पत्र लिखनेका विचार किया। परन्तु जान-बूझकर रुका रहा कि में कहीं जल्दबाजी में कोई कदम न उठा बैठूं या बिना सोचे कुछ न लिख दूं। मैं परमश्रेष्ठको सूचित कर देना चाहता हूँ कि उस प्रेस विज्ञप्ति और वाइसराय महोदयके भाषणसे मुझे बहुत ही दुःख हुआ है। मेरे खयालके अनुसार उक्त विज्ञप्ति और भाषण दोनोंसे उस स्थितिपर सही प्रकाश नहीं पड़ता जो मेरी समझमें मेरे शिमलासे रवाना होते समय थी। हमारी मुलाकातोंके विषयमें बहुत प्रश्न पूछे जा रहे हैं। निवेदन है कि या तो भेंटोंका ऐसा सार देते हुए, जिसके मजमूनके विषयमें हम दोनों सहमत हों, एक वक्तव्य प्रकाशित किया जाये या मुझे भेंटोंके बारेमें गोपनीयता बनाये रखने के उत्तरदायित्वसे मुक्त कर दिया जाये। यह कहना जरूरी नहीं है कि अपनी हदतक मैंने भेंटोंमें जो कुछ भी परमश्रेष्ठसे कहा है उसे गोपनीय रखनेकी मेरी कोई इच्छा नहीं है।

आशा है कि आप परमश्रेष्ठका निर्णय तार द्वारा सूचित करेंगे। ३० जून तक मेरा पता रहेगा लैबर्नम रोड ...।

गांधीजीके स्वाक्षरोंमें अंग्रेजी मसविदे (एस० एन० ७५५९) की फोटो-नकलसे।

१२७. भाषण: शिक्षकोंके कर्त्तव्यपर[२]

२५ जून, १९२१

श्री गांधीने कहा कि जब मुझे आपकी ओरसे निमन्त्रण मिला तब अच्छी तरह यह जानते हुए भी कि आप लोग मुझे अधिक न दे सकेंगे, मैंने आपका निमन्त्रण बड़े हर्षके साथ स्वीकार किया, क्योंकि एक अनुभवी शिक्षकके रूपमें में महसूस करता हूँ

  1. वाइसरायके निजी सचिव।
  2. बम्बई के प्राथमिक विद्यालयोंके शिक्षकों और विद्यार्थियोंकी एक सभा माण्डवीमें हुई थी, जिसका आयोजन गांधीजीको तिलक स्वराज्य-कोषके लिए एक थैली भेंट करनेके लिए किया गया था। यह भाषण गांधीजीने इसी अवसर पर दिया था।

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