पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 20.pdf/२८८

यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
२५८
सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय


उनसे कहूँगा कि खुले तौरपर आगे आयें और समाजकी नैतिकताकी जड़ोंको खोखली बनाती जा रही इस बुराईको दूर करनेका काम हाथमें लें।

[ अंग्रेजीसे ]
यंग इंडिया, २२-६-१९२१

१२०. तिलक स्मारक-कोष

किसी व्यक्तिकी स्मृतिका सच्चा आदर इसीमें है कि उसके जीवन के उद्देश्यको पूरा किया जाये। जिन्हें लोकमान्य कहने में भारतको पहले भी बड़ी खुशी होती थी और अब भी बड़ा हर्ष होता है, उन बाल गंगाधर तिलककी स्मृतिका सच्चा आदर इसीमें होगा कि स्वराज्यकी स्थापना करके उनकी स्मृतिको अमर बना दिया जाये। यदि हम उनकी पहली पुण्य तिथिपर ही स्वराज्यकी स्थापना कर सकें तो कितना अच्छा, कितना महान् कार्य होगा? और अभी हमारे पास जो चालीस दिन बाकी हैं, उनमें यह काम कर दिखाना असम्भव भी नहीं है। लेकिन मेरा आशावादी स्वभाव भी अगले अगस्तकी पहली तारीखतक स्वराज्यकी स्थापनाकी कल्पना नहीं कर सकता। हाँ, कठोर परिश्रम करके आगामी अक्तूबरकी पहली तारीखतक स्वराज्यकी स्थापना निश्चय ही सम्भव है। लेकिन अगर आगामी ३१ दिसम्बर या उसके पहले स्वराज्य स्थापित न हुआ तो कांग्रेसकी मौत ही समझिए। और यदि हम एक करोड़ रुपये जमा करनेका बेजवाड़ाका अपना संकल्प पूरा नहीं कर सके तो यह काम किसी हालत में पूरा नहीं हो सकता। ये पंक्तियाँ इस महीनेकी २२ तारीखको प्रकाशित होंगी। इसलिए पाठकोंको इस बातपर विचार करना होगा कि आठ दिनमें एक करोड़ रुपये कैसे जमा किये जायें।

आइए, अब देखें कि हम हैं कहाँ। यदि सारा काम बदस्तूर चलता रहा तो यह आसानीसे माना जा सकता है कि उक्त तारीखतक चालीस लाख रुपये बम्बईसे बाहर-बाहर जमा हो चुके होंगे। इसका अर्थ यह हुआ, मैं ब्योरा दूँ, कि कमसे-कम तीन लाख बंगालमें, चार पंजाब में, तीन सिन्धमें, तीन आन्ध्रमें, तीन मध्य प्रान्तमें, चार बिहारमें और दस गुजरातमें जमा होंगे। ये हुए तीस लाख। बाकीके प्रान्तोंके लिए दस लाखका अनुमान किसी प्रकार भी बहुत ज्यादा नहीं है। तो हम यह मान लें कि बम्बईको छोड़कर अन्य सभी प्रान्त मिलकर चालीस लाख रुपये जमा कर लेंगे।

तब सवाल यह है कि बाकीके साठ लाख रुपये बम्बईसे कैसे जमा किये जायें? ३० जूनसे पहले-पहले यदि हमें एक करोड़ रुपयेकी कुल रकम जमा करनी है तो यह मुख्यतः बम्बई और कलकत्तेके ऐसे धनाढ्य लोगोंसे ही लेनी होगी, जो देनेको तत्पर हों, अर्थात् उनसे जिनकी इस आन्दोलनमें सहानुभूति और उसमें विश्वास हो।

भारतके सारे अमीर लोग यदि यह बात समझ लें कि उनकी हिफाजत मौजूदा शासनसे डरनेमें नहीं वरन् निर्भय होकर आन्दोलनकी मदद करनेमें ही है, तो न