पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 20.pdf/२८३

यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।

११७. पत्र: मंगलदास पारेखको

बम्बई
२१ जून, १९२१

सुज्ञ भाईश्री,[१]

भाई वल्लभभाई लिखते हैं कि मिलोंसे जो चन्दा मिलनेवाला था वह अभीतक नहीं मिला है। देशका कारोबार इस तरह कैसे चल सकता है? यदि यह आन्दोलन अच्छा है तो उसका पोषण किया जाना चाहिए और यदि वह बुरा है तो फिर उसे नष्ट कर दिया जाना चाहिए। लेकिन आपके काम तो ऐसे ही चलते हैं। मिल मालिकोंको क्या गुजरातकी लाज भी प्यारी नहीं है? गुजरात के हिस्सेका थोड़ा-सा चन्दा भी क्या वे आसानीसे पूरा नहीं कर सकते? मुझे उम्मीद है कि अब आप ढिलाई नहीं बरतेंगे। मैं आपसे यही माँगता हूँ कि आप क्या देंगे, सो साफ बता दें। आप एक साथ ही सारी रकम न दें तो कोई हर्ज नहीं लेकिन पूरी रकम मिलोंके खाते में जमा हो जानी चाहिए। और वह भी इस तरहसे कि उसका ब्याज भी प्रान्तीय समितिको मिले। जब जरूरत पड़े तब हुंडी लिखकर देनेकी अनुमति भी मिलनी चाहिए। मैं कमसे-कम पाँच लाखकी आशा अवश्य करता हूँ। हर जगह मुझसे पूछा जाता है कि मिलें क्या कर रही है, वे मिलें जिन्होंने इस आन्दोलनसे इतना कमाया है।

मोहनदास गांधीका जय श्रीकृष्ण

[ गुजरातीसे ]
महादेव देसाईकी हस्तलिखित डायरीसे।
सौजन्य: नारायण देसाई

११८. टिप्पणियाँ

तोला भर काम

अली बन्धुओंकी क्षमा-याचनाके बारेमें ‘सर्वोन्ट ऑफ इंडिया’ की टिप्पणियोंने मेरे सामने इस कथनकी सत्यता बहुत ही स्पष्ट रूपसे सिद्ध कर दी है कि तोला-भर कामका मन-भर भाषणोंसे कहीं ज्यादा महत्त्व है। इस बातकी तो मैं कल्पना ही नहीं कर सकता कि ‘सर्वोन्ट ऑफ इंडिया’ जान-बूझकर इस क्षमा-याचनाका गलत अर्थ पेश करेगा अथवा उसे स्वयं ठीक ढंगसे नहीं समझ पायेगा। फिर भी इसके बारेमें उसने

  1. अहमदावादके उद्योगपति; जिन्होंने अहमदाबाद में आश्रमकी स्थापना के समय गांधीजीको आर्थिक सहायता की थी।