पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 20.pdf/२७

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६ सम्पूर्ण गाधी वाङ्मय छिपानेसे तो जनताकी कमजोरी ठीक उसी तरह बढ़ जाती है जिस तरह रोगको छिपानेसे रोग बढता है। एक भारतीय दूसरे भारतीयको पकड़े और तीसरा उसे सजा दे, इसमे तो शर्मकी कोई बात नहीं है। हां, अगर ऐसा कोई अवसर उपस्थित हो जाये तो यह अवश्य ही हमारे लिए शर्मकी बात है। इसके अलावा जब स्वराज्यकी स्थापना हो जायेगी तव अपराधी भारतीयको एक भारतीय सिपाही ही पकड़ेगा और भारतीय न्यायाधीश सजा देगा। वह शोचनीय नहीं जान पडेगा, इतना ही नहीं वरन् वह मान्य होगा और उचित भी जान पडेगा। श्री वामनरावने जो उद्गार प्रकट किये है वे बर्तमान परिस्थितियोको देखकर प्रकट किये है। पापी पेटको खातिर नौकरी करनेवाला सिपाही एक निर्दोष भारतीयको पकड़े और उसे वैसा ही भारतीय न्यायाधीश सजा दे-श्री वामनरावने हमारी इसी शर्मका जिक्र किया है और उसे उघाडकर रख दिया है। लेकिन हम अपने अनुवादमे इस अर्थको अभिव्यक्त नहीं कर पाये है, यह बात हमे दुख देती है। तथापि ऐसे दोषोको अनिवार्य मानकर हमें सन्तुष्ट रहना है। भाषा और उसमे भी अनुवाद मनुष्यके विचारोको अभिव्यक्त करनेके लिए कितना अपर्याप्त साधन है, यह हम देख रहे है। सच बोलनेकी अपेक्षा सच्चा काम करना ही सच्चा भाषण है। कृत्योमे विचारोका जो प्रतिबिम्ब पडता है वह भाषणोमे कहाँसे हो सकता है ? आइये, हम सब श्री वामनरावके कृत्योका अनु- करण करे और उनके आत्मत्यागमे, उनकी वीरतामे, उनकी निर्भयतामे, उनकी सादगी और निरभिमानतामें उनके सन्देशको पढे। [गुजरातीसे नवजीवन, १७-४-१९२१ ६. पत्र : नरसिंहराव दिवेटियाको गोधरा सोमवार, १८ अप्रैल, १९२१ 3 सुज्ञ भाईश्री, मुझे महादेवने खबर दी है कि आपके खुले पत्रका मैने जो उत्तर दिया है, उसमे मैने श्री दयाराम गीदुमलजीके सम्बन्धमे जो कुछ लिखा है, उससे आपको दुख हुआ है- बहुत ज्यादा दुख हुआ है। वह वाक्य आपको दुःख देनेके उद्देश्यसे नहीं लिखा गया। वह तो आपके और दयारामजीके प्रति मेरे मनमे जो आदरभाव है उसे व्यक्त करनेके लिए लिखा गया है। दुनिया चाहे जो कहे लेकिन आप दोनो पवित्र है, यह बतानेके लिए मैंने उक्त वाक्य लिखा है तथापि अगर आपको बुरा १. १८५९-१९३७, गुजराती कवि और साहित्यकार; एलफिन्टल कालेज, बम्बईमें गुजरातीके प्रोफेसर । २. देखिए खण्ड १९, पृष्ठ १८१-८५ ।