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आजकी परिस्थितिमें सरकारसे बातचीत करती ही नहीं चाहिए थी, यद्यपि न करने के पक्ष में भी बहुत कुछ कहा जा सकता है। जब दोनों पक्षोंने यह समझ लिया था कि इस खेलको अन्ततक खेलना ही है, तो आप और लॉर्ड रीडिंग जैसे ईमानदार और खरे प्रतिद्वन्द्वियोंके लिए यह बहुत जरूरी और उचित था कि इस खेलके नियम तय कर लेते, ताकि किसी भी पक्षकी ओरसे बेईमानी नहीं की जाती। और बेशक इन नियमोंका लाभ थोडेसे कृपापात्र व्यक्तियोंको नहीं, बल्कि इस खेलमें शामिल सभी लोगोंको प्राप्त होना चाहिए था। सबसे जरूरी चीज तो यह थी कि इस विषयपर सहमति हो जाती कि किन हथियारोंका प्रयोग किया जाना है। कुछ प्रान्तीय सरकारें ऐसी हैं जो कहने को तो कहती हैं कि प्रचारका मुकाबला प्रचारसे किया जायेगा, लेकिन दरअसल वे घोर दमनकी कार्रवाइयाँ कर रही हैं। मेरे विचारसे मुख्य सवालपर कोई सहमति न हो सकनेपर भी इस और ऐसे ही दूसरे अनेक मुद्दोंपर बातचीत करना उचित और उपयोगी हो सकता है।
आशा है कि आप मुझे गलत नहीं समझेंगे। अली बन्धुओंके त्यागके लिए मेरे मन में किसीसे भी कम आदरका भाव नहीं है और उनकी मैत्रीको में अपना परम सौभाग्य मानता हूँ। जिस विचारसे इधर कुछ दिनोंसे मेरा मन परेशान रहा है वह यह है कि हम लोग, जो अपने कार्यकर्ताओंके जेल जाने और तरह-तरहके कष्ट उठानेका मुख्य कारण हैं; स्वयं सारी आपदाओंसे अछूते बचे हुए हैं। उदाहरणके लिए सरकारने पत्रक बॉटन के अपराधमें निर्दोष बालकोंको जेल भेज दिया है, लेकिन उन पत्रकोंके लेखकोंको मुक्त रहने दिया है। हममें से कुछ लोगोंको गहरा मानसिक कष्ट पहुँचानेका इससे ज्यादा बढ़िया कोई और उपाय वह सोच ही नहीं सकती थी। फिर भी मेरी रायमें वह समय आ गया है, जब नेताओंको जेलके कष्ट भोगनके अवसरका स्वागत और बच निकलने के प्रस्तावोंको दृढ़ता से अस्वीकार करना चाहिए। मैंने अली बन्धुओंके आचरणपर जो आपत्ति की है, वह मामले को इसी दृष्टिकोण से देखते हुए की है। व्यक्तिगत रूपमें तो में उनसे स्नेह ही करता हूँ ।

गलत धारणा

पत्र उच्चाशयता और साहससे ओत-प्रोत है। और इन्हीं गुणोंके कारण परिस्थितिको ठीक रूपसे समझने में भूल हुई है। इस गलत धारणाका मुख्य कारण वाइसराय के दुर्भाग्यपूर्ण कथनको ही समझना चाहिए।

अली बन्धुओंने सफाई सरकारको नहीं दी। वह उन मित्रोंके लिए है, जिन्होंने उनके भाषणोंकी ओर उनका ध्यान दिलाया। इतना तो निश्चित ही है कि यह सफाई “वाइसरायके आदेशपर” नहीं दी गई। मेरे इस कथनको कि उन्होंने तो इस ओर इशारा भी नहीं किया था, आपसी चर्चाको जाहिर करनेका गुनाह न समझ