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९९. टिप्पणियाँ

जंग लगी तोपें

दक्षिणके प्रवास के बारेमें मेरा बहुत ज्यादा लिखनेका विचार था लेकिन उसके वादके अनुभवोंके सम्बन्धमें तो इतना अधिक लिखना है कि मुझे कुछ महत्त्वपूर्ण संस्मरणोंका संक्षेपमें जिक्र करके ही सन्तोष मानना होगा। मैं देखता हूँ कि जहाँ-जहाँ तनिक भी श्रद्धा है, कार्यकर्ता हैं, वहाँ-वहाँ लोग उदारता के साथ दान देते हैं। इस प्रवास के दौरान ऐसे अनुभवोंके दृष्टान्त प्रस्तुत करनेका मेरे पास समय नहीं है। बार्शी, कुर्डूवाड़, पंढरपुर और शोलापुरकी यात्रामें मुझे ये अनुभव हुए। बार्शीमें एक ही मिल है। भावनगर के देसाई परिवारके भाई यशवन्तप्रसाद हरिप्रसाद उस मिलके मालिक हैं। मिल-मालिक होनेके बावजूद वे प्रत्येक सार्वजनिक कार्यमें भाग लेते हैं। और उसमें अपना योगदान देते हैं। वे स्वयं जिस तरहसे रहते हैं वह सब मिल-मालिकोंके लिए अनुकरणीय है। उन्होंने अपने रहने के लिए मजदूरोंके समान एक झोंपड़ी बनवाई है। उन्होंने, उनके कार्यकर्ताओंने और मिलके अधिकारियोंने मिलकर तिलक स्वराज्य-कोषमें चन्दा दिया है। वहाँके मजदूर मुझे सुखी प्रतीत हुए। भाई यशवन्तप्रसादकी चरखेमें अटल श्रद्धा है और वे खुद ही चरखेका प्रचार कर रहे हैं। स्वयं खादी पहनते हैं और दूसरोंको भी खादी पहननेको कहते हैं। बार्शीमें और भी बहुत सारे व्यापारी हैं तथापि उनके पूरी-पूरी मदद न करनेके कारण हमें जितना चन्दा मिलनेकी उम्मीद थी उतना चन्दा न मिल सका।

कुर्डूवाड़ी तो एक साधारण रेलवे जंकशन ही है। यद्यपि वहाँकी आबादी सिर्फ दो हजार है तथापि वहाँसे लगभग दो हजार रुपये मिले। इसके लिए हम एक कच्छी- भाई सेठ रायमलके आभारी हैं जिनके उत्साह के कारण यह सम्भव हुआ। पंढरपुर दक्षिणकी काशी है, इसके बावजूद वहाँ अपेक्षाकृत निराशा ही हाथ लगी। फिर भी पंढरपुर एक ऐसा स्थान है जिसके लिए एक अलग प्रकरण ही लिखा जाना चाहिए। प्राचीन कालमें महाराष्ट्रके बहुत सारे सन्त और ज्ञानी वहाँ आकर रहे थे। शोलापुरके लिए भी एक अलग प्रकरणकी जरूरत है। वह महाराष्ट्र में व्यापारका एक बड़ा केन्द्र माना जाता है। वहाँपर एक तालाब के मध्यमें लिंगायत सम्प्रदायका सिद्धेश्वर नामक सुन्दर देवालय है। शोलापुरमें कपड़ेकी मिलें हैं। किन्तु वहाँ अन्य वस्तुओंका व्यापार भी काफी है। वहाँ दस हजारसे ऊपर रुपया इकट्ठा हुआ लेकिन वहाँके व्यापारको देखते हुए यह रकम बहुत ही थोड़ी कही जायेगी।

शोलापुर के बाद हमने कर्नाटकमें प्रवेश किया, बागलकोट और बीजापुर गये। दोनों स्थानोंपर बहुत उत्साह था, रकम भी अच्छी-खासी मिली, हालाँकि वहाँ अकालकी सी हालत है। वहाँ कौजलगीका[१] राज्य है। उनके नाम तो वहाँके मजिस्ट्रेट महोदयने

  1. हनुमन्तराव कौजलगी, कर्नाटकके एक कांग्रेसी नेता।