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९३. गौओंको बचाओ!

प्रोफेसर वासवाणीने गो-रक्षाका झंडा उठा लिया है। मुझे इस खतरेके आनेकी आशंका थी; किन्तु खतरा समयसे पहले ही सामने आ गया है। मैंने सोचा था कि यह काम उस समय उठाया जायेगा जब भारत इससे शान्तिसे निबटने की स्थिति में होगा। मेरी नम्र सम्मतिमें प्रोफेसर वासवाणीको यह आन्दोलन किसी बेहतर साइतमें शुरू करना चाहिए था। मुसलमानोंके पूरे सहयोग के बिना गो-रक्षाके लिए हिन्दू जो भी आन्दोलन शुरू करेंगे उसका विफल होना निश्चित है।

गो-रक्षाका सबसे बड़ा और अच्छा आन्दोलन यही है कि हिन्दू खिलाफत आन्दोलनमें शामिल हों। इसीलिए खिलाफतको मैंने कामधेनु बताया है।

हिन्दुओंके लिए जीवन-मरण के इस सवालपर उनकी भावनाका आदर करने के लिए मुसलमान भरसक कोशिश कर रहे हैं। मुस्लिम लीगने हकीम श्री अजमलखाँकी अध्यक्षता में अमृतसरमें अभी दो साल पहले गो-रक्षा के बारेमें एक प्रस्ताव पास किया। मौलाना अब्दुल बारीने इसपर लेख लिखे हैं। अपने हिन्दू भाइयोंका खयाल करके अली बन्धुओंने अपने घरमें गो-मांसका प्रयोग बन्द कर दिया है। मियाँ छोटानीने पिछली बकरीदपर अकेले बम्बई में सैकड़ों गौओंकी जान बचाई। अतः इस सम्बन्ध में हम यह नहीं कह सकते कि मुसलमान हाथपर हाथ धरे बैठे रहे हैं।

अगर हमने गो-रक्षाके लिए मुसलमानोंको राजी करनेकी जल्दी मचाई तो निश्चित मानिए कि इसका मतलब अपने उद्देश्यको विफल करनेका सामान जुटाना होगा। मुसलमान अपना वचन नहीं निबाहते, ऐसा कुछ मैंने तो नहीं देखा। लेकिन पूर्वग्रहोंके मिटने में समय तो लगता ही है, और यहीं बात मुसलमानोंके पूर्वग्रहोंके सम्बन्धमें भी लागू होती है। प्रबुद्ध मुसलमानोंका मत हमारे पक्षमें है। आम लोगोंपर उसका असर होने में कुछ समय तो लगेगा ही। इसलिए हिन्दुओंको धीरज रखना चाहिए।

शिकारपुरके हिन्दुओंने एकमत होकर गो-वध रोकने के पक्षमें मत दिया। लेकिन इसमें आश्चर्य क्या है? क्या कोई ऐसा हिन्दू भी हो सकता है जो इसके विपक्षमें मत दे? अगर इस सर्वसम्मत विचारका उपयोग मुसलमानोंका विरोध तोड़नेके लिए किया जाता है तो इससे उनका विरोध बढ़ेगा ही। हिन्दू सदस्योंको इस सवालपर मुसलमानोंकी भावना जाननी चाहिए थी, उसका पता लगाना चाहिए था। और जब तक वे मुसलमानोंका मत अपने विपक्षमें पाते तबतक उन्हें इस सवालपर मतदान नहीं कराना चाहिए था।

हमें हमेशा इस बातको याद रखना चाहिए कि एक ऐसा पक्ष है जो अपने स्वार्थ के लिए हम हिन्दू-मुसलमानोंको अलग-अलग रखनेके लिए बराबर प्रयत्नशील है। यह पक्ष इस मामलेमें कभी हिन्दुओंकी भावनाओंका सम्मान करनेका भी दिखावा कर सकता है। मैं तो उससे बराबर सावधान ही रहूँगा और कभी उसका विश्वास