७३. पत्र : हसन इमामको
[ २७ मई, १९२१ के बाद ]
आपके पत्र[१] और संलग्न पत्रके[२] लिए धन्यवाद। विश्वास रखिए उत्तेजना दूर करने और दंगे रोकने के लिए यथाशक्ति सब-कुछ करूँगा। इस महीने किसी भी हालतमें भारत के इस अंचलको छोड़ सकना मुझे कठिन दिखाई देता है।
हृदयसे आपका,
७४. सन्देश : गयाकी जनताके नाम[३]
मैंने सुना है कि बिहारमें मेरे नामसे कितने ही लोग हिन्दू और मुसलमानोंको गोश्त मछली खानेसे रोकते हैं। शान्तिमय असह्योगके युद्ध में किसीको निरामिष भोजन करनेकी बात समझानेका समावेश नहीं होता। जबरदस्तीकी तो बात ही नहीं है।
किसी आदमीको अपनी रुचिके अनुसार खानेसे जबरदस्ती रोकना अहिंसा नहीं है, हिंसा है। मैं तो किसीको दारू पीनेसे भी जबरदस्ती नहीं रोकना चाहता।
बअमन तर्केमवालात (सविनय अवज्ञा) में जबरदस्तीकी मनाही है। जो आदमी किसीको [जबरदस्ती] उसकी रुचिके अनुसार खाने-पीनेसे रोकता है वह सबके प्रति गुनाह करता है। ऐसी जबरदस्तीसे हमारे व्रतको बड़ा नुकसान पहुँचेगा। इसलिए मैं चाहता हूँ कि कोई किसीको मेरे या अहिंसाके नामसे खाने-पीने में जबरदस्ती न रोके और किसीके पाससे गोश्त मछली छीननेकी भी कोशिश न करे।
मेलेमें जबरदस्ती जानवरोंको छीनना भी मना है।
मोहनदास गांधी