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कराचीसे प्रतिवाद


उसे फैलाये और बढ़ावा दे। अश्रद्धा तो असहयोगका मूल तत्त्व है। हर असहयोगीका विश्वास है कि सरकार यानी शासन-प्रणाली बुरी है, वह भारत के साधन-स्रोतोंका शोषण करती है, और उसने भारतको इतना कंगाल बना दिया है कि अकाल और बीमारियाँ देशपर हावी हो गई हैं। भारतकी असहायावस्थाके लिए यह शासन प्रणाली ही जिम्मेदार है। ब्रिटिश मन्त्रियोंने मुसलमानोंसे किये हुए वादोंको तोड़ा है, इसमें कोई शक नहीं। प्रत्येक असहयोगी इन और ऐसी दूसरी बहुत-सी बातों में विश्वास करता है और इसलिए असहयोग द्वारा इस बुराईको मिटाना चाहता है। मैं श्री सुन्दरलालको उनकी गिरफ्तारीपर बधाई देता हूँ। सच पूछा जाये तो मुझे उनसे ईर्ष्या होती है। मध्य-प्रदेश सरकार चाहे तो दूसरे सभी नेताओंको जेलमें बन्द कर दे, लेकिन इस तरहके पागलपन और अविचारपूर्ण दमनसे जिस अश्रद्धाको वह कुचलना चाहती है वह और भी गहरी और व्यापक ही होगी। जनताका कर्तव्य स्पष्ट है। वह अपने रचनात्मक कार्यक्रममें लगी रहे और इस तरह अन्तिम विजयकी तैयारियाँ करती रहे। हमें सरकारकी बौखलाहटके बावजूद अपना आपा नहीं खोना चाहिए।

[ अंग्रेजीसे ]
यंग इंडिया, २५-५-१९२१

६९. कराचीसे प्रतिवाद

सम्पादक,

‘यंग इंडिया’

महोदय,

चार तारीखके[१] ‘यंग इंडिया’ में आपकी कराचीकी आलोचना पढ़कर कई कराचीवालोंको बड़ा दुःख हुआ। महोदय, हम समझते हैं कि आपने अनजाने ही हमारे शहरके साथ अन्याय किया है। आपने एक राष्ट्रीय स्कूलके हिसाब किताबके बारेमें स्थानीय तौरपर उठ खड़ी हुई एक बहसके बारेमें टीका की थी। (वह एक ही राष्ट्रीय स्कूलके बारेमें है, कई राष्ट्रीय स्कूलोंके बारेमें नहीं जैसा कि आपने लिखा है)। वह बहस इसलिए उठी थी कि कुछ ईमानदार कार्यकर्त्ताओंको कुछ दूसरे उतने ही ईमानदार, हालाँकि कुछ ज्यादा अनुदार, देश सेवकोंके बारेमें एक बिलकुल ही बेबुनियाद किस्मकी गलतफहमी हो गई थी; आप की टिप्पणी पढ़कर बड़ी पीड़ा पहुँची। उसमें कुछ ऐसे खरे और त्यागी व्यक्तियों की ईमानदारीपर शक जाहिर किया गया है जिन्होंने मातृभूमिकी बलिवेदी पर अपना सर्वस्व चढ़ा दिया है और जो किसी भी तरह के संदेहसे उतने ही

  1. देखिए “टिप्पणियाँ”, ४-५-१९२१।