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५९. भाषण : संगमनेरकी सभा में[१]

२२ मई, १९२१

आज हम सबसे बड़े साम्राज्यसे मुकाबला कर रहे हैं। हमें तीन महान् प्रश्नोंको सुलझाना है। लेकिन हम जो स्वाँग करते हैं, लगता है हमसे उस दिशा में कुछ बनने वाला नहीं है। आजके दृश्यको देखकर मेरे मनमें विचार उठा है कि यदि समस्त हिन्दुस्तान में इसी तरह काम हो रहा है तो फिर हिन्दुस्तान स्वराज्य के योग्य नहीं है। हिन्दुस्तानमें स्थान-स्थानपर मिलनेवाले प्रेमसागर में मैं निमज्जित हो रहा हूँ। लेकिन जबतक इस सागरसे अग्नि-जैसी शक्ति प्रगट नहीं होती तबतक यह सब निरर्थक है। मुझे अपनी पूजा नहीं भाती, मुझे चरण-स्पर्श अच्छा नहीं लगता, मुझे तो वह अत्यन्त अप्रिय है। इसमें हिन्दुस्तानका पतन निहित है। हिन्दुस्तान चरण-स्पर्शसे स्वराज्य प्राप्त करनेवाला नहीं है, हिन्दुस्तानको तो मैं सीधा तनकर खड़ा हुआ देखना चाहता हूँ। मुझे न तो गांधी-राज्य चाहिए और न व्यक्ति राज्य; मुझे तो सिर्फ स्वराज्य चाहिए। इसलिए मुझे चरण-स्पर्श नहीं चाहिए।

यूरोपीय सभ्यताके ऊपरी व्यवहारका अनुकरण करनेमें हमने अति कर दी है। इसकी अपेक्षा यदि हम उनमें निहित सुन्दरताका अनुकरण करते तो अधिक अच्छा होता। इस रिबनका उपयोग तो केवल स्त्रियाँ ही करती हैं। यदि आपको इस बातका खयाल नहीं है कि कहाँ किस वस्तुका उपयोग करना चाहिए तो आप उसका उपयोग करते ही क्यों हैं? आपके यह माननेसे कि पुष्पके साथ रिबनकी शोभा बढ़ती है यह प्रगट होता है कि हिन्दुस्तानमें हमारे आचरणमें वर्णसंकरता आ रही है। कांग्रेस महा-समिति इससे बचने का उपाय बताती है। आप जो कुछ करते हैं वह न तो विवेकपूर्ण है और न विचारपूर्ण ही। क्या आप तिलक महाराजकी पूजा करते हैं? तिलक महाराजने तो एक ही मन्त्र बताया है। इसी मन्त्रका जाप करते हुए उन्होंने देहत्याग किया। तिलक महाराजकी यह विरासत तो समस्त हिन्दुस्तानके लिए है। लेकिन हिन्दुस्तानके अन्य भागोंकी अपेक्षा आपका कर्त्तव्य अधिक है। १ अगस्तके दिन आप उनकी आत्माको क्या उत्तर देंगे? [यदि आप और कुछ नहीं कर सकते तो] कमसे-कम आप पूर्ण स्वदेशी तो बनें। मन्दिरमें विदेशी चीजोंका उपयोग छोड़ दें। पुजारियोंसे मैं कहता हूँ कि आप मुझे विदेशी कपड़ेसे सज्जित मन्दिरोंमें ले जाते हैं, उससे मुझे दुःख होता है।

[ गुजरातीसे ]
नवजीवन, ९-६-१९२१
  1. गांधीजीकी छात्राके विवरणसे उद्धृत।