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सुझाव दिया है, यह कार्य उसीके द्वारा सम्भव है। फीस न ली जाये और उत्तम शिक्षा दी जाये, कर ज्यादा न लागू किये जायें। इस तरह चरखा-उद्योग आरम्भ एक पन्थ दो काज" कर सकते हैं।

एक पारसी भाई द्वारा अपना बचाव

जलगाँवसे श्री फीरोजशाह तेमुलजी मिस्त्रीने बताया है कि उनकी शराबकी दुकान है। वे बचपनसे ही इस धन्धेमें लगे हुए हैं। उनका बहुत बड़ा परिवार है। उनकी आयु ५१ वर्षकी है। वे बताते हैं कि अगर आज वे दुकान छोड़ दें तो अन्य चार हिन्दू उसे लेनेके लिए तैयार बैठे हैं। ऐसी स्थितिमें अगर वे अपना धन्धा छोड़कर अपना तथा अपने परिवारका निर्वाह करने के अयोग्य बन जायें तो इससे क्या हासिल होगा ? इससे क्या शराबका धन्धा बन्द हो जायेगा ? ऐसी हैं इन भाईकी दलीलें; इनके प्रति मुझे पूरी सहानुभूति है। उनकी मुश्किलें समझमें आ सकती हैं लेकिन ऐसे धर्म-संकटसे निकल जानेमें ही पुरुषार्थ है । यदि ये भाई शराब पीना अथवा बेचना पाप समझते हैं तो उपर्युक्त दलीलके लिए कोई अवकाश ही नहीं रह जाता। हजारों लोग पापकर्म करते हैं, किन्तु उससे हमें कोई पाप करनेका अधिकार नहीं मिल जाता । और पापकर्म करते हुए ही अगर हम अपने परिवारका पालन-पोषण करते हों तो उसकी अपेक्षा भीख मांगकर निर्वाह करना अधिक अच्छा है।

इन भाईने अपने पत्रमें और भी बहुत-सी बातें बताई हैं जो जानने योग्य और खेदजनक हैं। वे लिखते हैं कि वे देशी शराब बेचते हैं और स्वयंसेवक उन्हें परेशान करते हैं लेकिन विलायती शराब पीनेवालोंको तो रोकने अथवा कहनेकी भी हिम्मत नहीं होती। इसके अतिरिक्त वे लिखते हैं कि स्वयंसेवक सिर्फ समझाते ही हों सो बात नहीं वे तो दुकानपर घेरा डालते हैं, गाली देते हैं तथा पुराने नौकरोंको धमकी देते हैं। यदि धमकीसे काम नहीं चलता तो मारते भी हैं। दुकानदारोंके हाथसे शराब छीन लेते हैं। जिसके पास शराब होनेका सन्देह हो, उसके घरकी तलाशी तक भी लेते हैं। कोई उसे अपनी दुकानसे चीजें नहीं खरीदने देता, और यदि कोई दुकानसे बाहर निकलता है तो उसका मुँह काला करके उसे गधेपर बिठाकर बाजार में घुमाया जाता है।

पत्रसे लगता है कि ये सब शिकायतें सच्ची हैं। यदि ऐसा है तो ये तथ्य स्वयं-सेवकोंको शर्मिन्दा करनेवाले हैं। शराब पीनेवालोंको समझाना हमारा जितना फर्ज है हमारा उतना ही फर्ज उनके शरीरकी रक्षा करना भी है। शराबियोंसे शराब छुड़वाने के लिए यदि हम जोर-जबरदस्ती करेंगे तो इससे वह नहीं छूटेगी; इतना ही नहीं वरन् इससें हमारे संघर्षको धक्का पहुँचेगा। प्रत्येक स्थानके स्वयंसेवकोंको जानना चाहिए कि उन्हें किसीपर जोर-जबरदस्ती करनेका कोई हक नहीं है। उन्हें ठीक तरीकेसे विनम्रता बरतते हुए जो उचित जान पड़ें वही प्रयास करने चाहिए। उदाहरणस्वरूप दुकानोंके समीप खड़े होकर शराब पीनेवालेको विनयपूर्वक समझाना, उनके कुटुम्बियोंको समझाना, उनकी जात-बिरादरीको समझाना। इतना करनेके सिवा हमें कुछ भी करनेका कोई अधिकार नहीं है। लोगोंको मार-पीटकर पुण्यवान् न बनायें । जो पापी बनना