पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 2.pdf/९३

यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
७१
पत्र : फर्दुनजी सोराबजी तलेयारखाँको

दी है। अगर किसी बातके स्पष्टीकरणकी जरूरत हो तो आपका कह देना-भर काफी होगा। परन्तु इतनी आशा तो मुझे है ही कि आप आर्थिक विचारोंको अपने आड़े नहीं आने देंगे। मुझे निश्चय है कि आप दक्षिण आफ्रिकामें बहुत-कुछ कर सकेंगे। सच तो यह है कि जितने कामका में निमित्त हो सकता हूँ उससे ज्यादा आप कर सकेंगे।

मैं यहाँ बड़े-बड़े लोगोंसे मुलाकातें करता आ रहा हूँ। 'मद्रास टाइम्स'ने अपना पूरा समर्थन प्रदान किया है और गत शुक्रवारको उसमें एक बड़ा जोरदार और अच्छा लेख प्रकाशित हुआ था। 'मेल' ने समर्थन करने का वचन दिया है। सभा[१] शुक्रवारको है। उसके बाद मैं कलकत्ता और फिर शायद पूना जाऊँगा। प्रोफेसर भांडारकरने अपनी पूरी सहायताका वचन दिया है। मुझे विश्वास है कि वे कुछ भलाई कर सकते हैं। मैं यहाँ आते हुए एक दिन पूनामें ठहरा था।

मेरा खयाल है, मैंने आपको लिखा था कि प्रवासी-विधेयकको सम्राज्ञीकी अनुमति प्राप्त हो गई है। (घटनाएं इतनी तेजीसे घटती हैं कि मैं उन्हें जल्दी भूल जाता हूँ)। यह एक अनपेक्षित और आकस्मिक आघात हैं। अब मैं राज्यकी सहायता से प्रवासियोंको भेजना स्थगित करने की प्रार्थना फिरसे दुहरानेवाला हूँ। नेटालके एजेंट-जनरलका कूटनीतिक प्रतिवाद आपने अखबारोंमें पढ़ा ही होगा। उससे दीख पड़ता है कि लन्दनमें भी आंदोलन छेड़ने की आवश्यकता है। मेरा दृढ़ विश्वास है कि वहाँ आप मेरी अपेक्षा बहुत अधिक काम कर सकते हैं।

अगर आप मेरे साथ ही नेटाल चल सकें तो बड़ा अच्छा होगा। और मैं यह भी कह दूँ कि यदि उस समयतक 'कूरलैंड' जहाज उपलब्ध रहा तो शायद मैं आपके लिए मुफ्त टिकट भी प्राप्त कर सकूँगा।

हृदयसे आपका,
मो॰ क॰ गांधी

[पुनश्च :]
आपका पत्र आज सुबह ही मुझे मिला।

मो॰ क॰ गांधी

मूल अंग्रेजीसे; सौजन्य : रुस्तमजी फर्दुनजी सोराबजी तलेयारखाँ
  1. गांधीजी ने २६ अक्टूबरको एक सार्वजनिक सभामें भाषण किया था; देखिए पृ॰ ७२।