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पत्र : 'टाइम्स ऑफ इण्डिया' को


दक्षिण आफ्रिकासे आये हुए नेटाल-सरकारके ताजे अखबार, दुर्भाग्यवश, मेरे इस कथनको और भी जोरदार बनाते हैं कि वहाँ भारतीयोंको क्रूरताके साथ उत्पीड़ित किया जाता है। गत अगस्तमें यूरोपीय कारीगरोंकी एक सभा हुई थी। उसका उद्देश्य भारतीय कारीगरोंको लानेके इरादेका विरोध करना था। उसमें जो भाषण दिये गये थे उन्हें पढ़ना नेटालके एजेंट-जनरलके लिए बड़ा दिलचस्प होगा। उसमें भारतीयोंको “काला घुन" कहकर पुकारा गया था। सभामें एक आवाज उठी : "हम बन्दरगाहपर जायेंगे और उन्हें रोक देंगे।" पिकनिकके लिए गये यूरोपीय बच्चोंके एक दलने भारतीय और काफिर बच्चोंको चाँदमारीका निशाना बनाया था और उनके चेहरोंपर गोलियां दागी थीं, जिनसे अनेक निर्दोष बच्चे घायल हो गये थे। द्वेष इतना गहरे पैठ गया है कि बच्चे सहज ही भारतीयोंको तिरस्कारको नजरसे देखने लगे हैं। इसके अलावा, खयाल रखना चाहिए कि मुफ्त वापसी टिकटकी कहानी का व्यापारी-वर्गके साथ कोई सम्बन्ध नहीं है। वे अपने खर्चसे नेटाल जाते हैं और कठिनाइयाँ सबसे ज्यादा उन्हें ही महसूस होती है। बात यह है कि विश्वास की हुई बातोंके सैकड़ों बयानोंसे एक हकीकत ज्यादा जोरदार होती है। और मेरी पुस्तिकामें मेरा अपना कथन बहुत कम है। वह एजेंट-जनरल श्री पीसके बेसबूत बयानके खिलाफ मेरे कथनको सही साबित करने के लिए तथ्योंसे भरी हुई है। और इन तथ्योंका संकलन खास तौरसे यूरोपीय सूत्रोंसे किया गया है। अगर पुस्तिकाके उत्तरमें कहने योग्य उतनी ही बातें हैं, जितनी श्री पीसके बयानमें कही गई हैं, तो फिर टालको भारतीयोंके लिए मामूली आरामकी जगह बनाने के लिए बहुत-कुछ करना बाकी है। जहाँतक भारतीयोंके अदालतमें न्याय प्राप्त करने की बात है, मैं ज्यादा कहना नहीं चाहता। मैंने यह कभी नहीं कहा कि भारतीयोंको अदालतोंमें न्याय नहीं मिलता। और मैं यह स्वीकार करने को भी तैयार नहीं हूँ कि उन्हें सब अदालतोंमें हर मौकेपर न्याय मिलता ही है।

महोदय, मैं अतिशयोक्ति करने का आदी नहीं हूँ। आपने सरकारी जाँचकी माँग की है। हमने भी वही किया है। और अगर नेटाल-सरकारको अप्रिय रहस्य प्रकट होनेका भय नहीं है तो इस तरहकी जाँच जितनी जल्दी हो सके, कराई जाये। मैं आश्वासन देता हूँ कि पुस्तिकामें जितना कहा गया है, जाँचमें उससे बहुत ज्यादा साबित हो जायेगा। मुझे लगता है कि यह आश्वासन में बिना किसी जोखिमके दे सकता हूँ। मैंने पुस्तिकामें सिर्फ वे उदाहरण दिये हैं, जिन्हें अत्यन्त सरलतासे प्रमाणित किया जा सकता है। महोदय, हमारी स्थिति बहुत चिन्ताजनक है। आप अबतक इतनी उदारताके साथ हमारा जो सक्रिय समर्थन करते आये है, उसकी भविष्यमें हमें लम्बे समयतक जरूरत रहेगी। जैसा कि इस सप्ताहके पत्रोंसे स्पष्ट है, गत वर्ष आपने और आपके सहयोगियोंने जिस प्रवासी कानून संशोधन विधेयक की बहुत जोरदार शब्दोंमें निन्दा की थी, उसे सम्राज्ञीकी स्वीकृति प्राप्त हो गई है। मैं आपके पाठकोंको स्मरण करा दूँ कि विधेयक द्वारा गिरमिटकी अवधिको ५ वर्षसे बढ़ाकर अनिश्चित कालतक की कर दिया गया है। अगर कोई मजदूर पाँच वर्षकी