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सम्पूर्ण गांधी वाङ् मय

अनुरोध करते भी नहीं। हम उन बातोंको जनताकी नजरमें लाते हैं, ताकि तमाम समाजोंके न्यायशील व्यक्ति और समाचार-पत्र अपनी नापसन्दगी व्यक्त करके उनकी कठोरताको अधिकसे-अधिक घटा दें और हो सके तो अन्ततः उन्हें निर्मूल कर दें। परन्तु हम ब्रिटिश सरकारसे यह अनुरोध तो निश्चय ही करते हैं कि ऐसी दुर्भावनाओं का कानून में उतारा जाना रोका जाये। और हमें आशा है कि हमारा यह अनुरोध व्यर्थ नहीं होगा। हम ब्रिटिश सरकारसे यह प्रार्थना अवश्य करते हैं कि उपनिवेशके विधानमंडल हमारी स्वतन्त्रताको किसी भी रूपमें सीमित करने के लिए जो भी कानून बनायें, उनका निषेध किया जाये।

इससे मैं अन्तिम प्रश्नपर आता हूँ। वह प्रश्न यह है कि ब्रिटिश सरकार उपनिवेशों और सहयोगी राज्योंकी इस तरहकी कार्रवाइयोंमें कहाँतक हस्तक्षेप कर सकती है? जहाँतक जूलूलैंडका सम्बन्ध है वहाँतक तो कोई प्रश्न है ही नहीं, क्योंकि वह ताज का उपनिवेश है और उसका शासन गवर्नरके जरिये सीधे १०, डाउनिंग स्ट्रीट [ब्रिटिश मन्त्रालय] से होता है। नेटाल और शुभाशा अन्तरीप (केप ऑफ गुड होप) के समान वह स्वशासित या उत्तरदायी शासनवाला उपनिवेश नहीं है। नेटाल और शुभाशा अन्तरीपके बारेमें नेदालके संविधानके अधिनियमकी सातवीं उपधारामें व्यवस्था है कि यदि स्थानीय संसदके किसी अधिनियमको गवर्नरकी अनुमति प्राप्त हो जाये और इस तरह वह कानून बन जाये, तो भी सम्राज्ञी-सरकार दो वर्ष के अन्दर कभी भी उसका निषेध कर सकती है। उपनिवेशोंके उत्पीड़क कानूनोंके खिलाफ यह एक सरक्षण है। गवर्नरके नाम सम्राज्ञीके निर्देशोंमें अमूक विधेयक गिना दिये गये हैं, जिन्हें सम्राज्ञी-सरकारकी पूर्व-स्वीकृति प्राप्त किये बिना गवर्नर अनुमति नहीं दे सकता। ऐसे विधेयकोंमें वर्ग-भेदके लक्ष्यवाले विधेयक शामिल हैं। मैं एक उदाहरण देनेकी धृष्टता करूँगा। ऊपर बताये हुए प्रवासी कानून संशोधन विधेयकको गवर्नरने अनुमति प्रदान कर दी है। परन्तु वह तभी अमलमें आ सकता है, जबकि सम्राज्ञी उसे स्वीकृति दे दें। अबतक उसे स्वीकृति नहीं दी गई। इस तरह, आप देखेंगे कि सम्राज्ञीका हस्तक्षेप सीधा और स्पष्ट है। यह तो सत्य है कि ब्रिटिश सरकार उपनिवेश-विधानमण्डलोंके कानूनोंमें हस्तक्षेप बहुत धीमे-धीमे करती है, फिर भी ऐसे उदाहरण मौजूद हैं जबकि उसने इससे कम जरूरी प्रसंगोंपर भी दृढ़तासे काम लेने में संकोच नहीं किया। जैसाकि आप जानते हैं, पहला मताधिकार-विधेयक ऐसे ही लाभप्रद हस्तक्षेपसे रद हुआ था। इसके अलावा, उपनिवेश सदैव ऐसे हस्तक्षेपसे डरते रहते हैं। और इंग्लैंडमें व्यक्त की गई सहानुभूतिसे तथा कुछ महीने पूर्व जो शिष्टमण्डल श्री चेम्बरलेनसे मिला था, उसको श्री चेम्बरलेनके सहानुभूतिपूर्ण उत्तरसे दक्षिण आफ्रिकाके अधिकतर पत्रोंने—कमसे-कम नेटालके पत्रोंने तो अवश्य ही—अपना रुख बदल दिया है। अब वे सोचने लगे हैं कि प्रवासी-विधेयक तथा इसी प्रकारके अन्य विधेयकोंको सम्भवतः सम्राज्ञीकी अनुमति प्राप्त न होगी। जहाँतक ट्रान्सवालका सम्बन्ध है, समझौता मौजूद है ही। जहाँतक ऑरेंज फ्री स्टेटकी बात है, मैं इतना ही कह सकता