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सम्पूर्ण गांधी वाङ् मय

पर स्थापित चुनावमूलक प्रातिनिधिक संस्थाएँ नहीं हैं, उन्हें मतदाता-सूचीमें अपने नाम दर्ज कराने के योग्य तबतक नहीं माना जायेगा, जबतक कि वे इस कानूनके अमलसे बरी किये जानेके लिए स-परिषद-गवर्नरका आदेश पहले प्राप्त न कर लें।

इस कानूनके अमलसे उन लोगोंको भी बरी रखा गया है, जिनके नाम इस समय वाजिवी तौरसे मतदाता-सूचीमें दाखिल हैं।

इसपर विधानसभाके सामने एक प्रार्थनापत्र[१] पेश किया गया, जिसमें बताया गया कि भारतमें उसकी विधानपरिषदोंके रूपमें "संसदीय मताधिकारके आधारपर स्थापित चुनावमूलक प्रातिनिधिक संस्थाएँ" मौजूद हैं, और इसलिए विधेयक एक त्रासदायक व्यवस्था है (सहपत्र २, परिशिष्ट क)। यद्यपि लोक-प्रचलित अर्थ में हमारी संस्थाओंको उपर्युक्त कानूनकी आवश्यकताएँ पूर्ण करनेवाली नहीं कहा जा सकता, फिर भी, सादर निवेदन है कि कानूनकी दृष्टिसे वे वैसी जरूर हैं। और लन्दन 'टाइम्स'का तथा नेटालके एक सुयोग्य न्यायशास्त्रीका भी यही मत है।[२] (सहपत्र ३, पृष्ठ ११)। स्वयं श्री चेम्बरलेनने अपने १२ सितम्बर, १८९५[३] के खरीतेमें उपयुक्त प्रथम विधेयकको स्वीकार करने की असमर्थता प्रकट करते हुए और नेटालके मंत्रियोंकी दलीलोंका उत्तर देते हुए अन्य बातोंके साथ-साथ कहा है :

मैं इस सत्यको भी स्वीकार करता हूँ कि भारतीयोंकी उनके अपने देशमें कोई प्रातिनिधिक संस्थाएं नहीं हैं। और अपने इतिहासके उन जमानों में जबकि वे यूरोपीय प्रभावसे मुक्त थे, स्वयं उन्होंने अपने यहाँ ऐसी कोई प्रणाली कभी स्थापित नहीं की है (सहपत्र ४)।

श्री चेम्बरलेनको एक प्रार्थनापत्र[४] (सहपत्र २) भेजा गया है, और लन्दनसे खानगी तौरपर खबर मिली है कि वे उसपर विचार कर रहे हैं। श्री चेम्बरलेनने इस विधेयकके सिद्धान्तको पहले ही स्वीकार कर लिया है। मंत्रियोंने नेटालकी संसदमें पेश करने के पहले यह विधेयक उनके पास भेज दिया था (सहपत्र ४)। तथापि, दक्षिण आफ्रिकाके भारतीयोंका विश्वास है कि प्रार्थनापत्रमें जिन वस्तुस्थितियोंको स्पष्ट किया गया है, उनसे श्री चेम्बरलेनको अपने विचार बदल देनेकी प्रेरणा मिलेगी।

दक्षिण आफ्रिकाके भारतीयों और भारतमें रहनेवाले भारतीयोंकी स्थितिकी तुलना नहीं की जा सकती। इस बातपर जितना जोर दिया जाये उतना थोड़ा ही है। भारतमें तो राजनीतिक उत्पीड़न होता है और वर्ग-भेदके कानून बहुत कम हैं। दक्षिण आफ्रिकामें सरासर वर्ग-भेदके कानून बनाये जाते हैं और भारतीयोंको अछूतोंकी कोटिमें गिराया जा रहा है।

  1. २७ अप्रैल १८९३ का; देखिए खण्ड १, पृ॰ ३२३–३९।
  2. देखिए पृ॰ १६।
  3. साधन सूत्रमें '१८८५' है, जो स्पष्टः छपाई की भूल है।
  4. २२ मई, १८९६ का; देखिए खण्ड १, पृ॰ ३३३–५१।