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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

६ अप्रैल : प्रभावशाली ब्रिटिश तथा भारतीय मित्रों के नाम एक परिपत्र लिखा और उसके साथ चेम्बरलेनको प्रेषित प्रार्थनापत्रकी नकलें भेजी। मूल प्रार्थनापत्र श्री चेम्बरलेनको भेजने के लिए नेटालके गवर्नरके सुपुर्द किया। जहाजसे उतरने के समयकी घटनाओंके बारेमें नेटाल-सरकारके साथ हआ पत्र व्यवहार समाचार-पत्रोंको प्रकाशनार्थ प्रेषित।

१३ अप्रैल : समाचार-पत्रोंमें लिखकर भारतीयोंके आगमन तथा वासके सम्बन्धमें अपने विरुद्ध लगाये गये आरोपोंका प्रतिवाद किया।

७ मई : केन्द्रीय अकाल-पीड़ित सहायता-कोष, कलकत्ताके अध्यक्षको सूचना दी कि लिया नेटालके भारतीयोंने पीड़ितोंके सहायतार्थ १, ५३९ पौंड १ शि॰ ९ पेन्स चन्दा इश इकट्ठा किया है।

१८ मई : प्रिटोरियामें ब्रिटिश एजेंटसे भेंट की और लिखित दलील पेश की कि १८८५ के कानून ३ के अर्थ-सम्बन्धी परीक्षात्मक मुकदमेका खर्च ब्रिटिश सरकार बरदाश्त करे।

९ जून : संगरोध, विक्रेता-परवाना, प्रवासी प्रतिबन्धक और गोरे गिरमिटिया भारतीय संरक्षण विधेयकोंके कानून बन जानेके सम्बन्धमें हंटरको तार।

२२ जून : महारानी विक्टोरियाकी रजत-जयन्तीके दिन भारतीय पुस्तकालयके उद्टनके अवसरपर भाषण दिया।

२ जुलाई : चारों भारतीय-विरोधो कानूनोंके बारेमें श्री चेम्बरलेनको प्रार्थनापत्र।

१० जुलाई : ब्रिटेन तथा भारतके लोकसेवकोंको भारतीय-विरोधी कानूनोंके सम्बन्धमें परिपत्र भेजा।

११ सितम्बर : वजित प्रवासी होने के आरोपमें जिन भारतीयोंपर मुकदमा चलाया गया था उनकी पैरवी की और उन्हें छुड़ा लिया।

१४ सितम्बर : पारसी रुस्तमजीके दानसे और डॉ॰ बथकी देखरेखम डर्बनमें एक भारतीय अस्पतालकी स्थापना; जिसमें, बादमें, गांधीजी दो घण्टे रोज दवा-दारू देनेवाले सहायकका काम करते रहे।

१८ सितम्बर : लंदनके औपनिवेशिक प्रधानमंत्री-सम्मेलन में श्री चेम्बरलेनने जो भाषण दिया था उसके फलितार्थोके सम्बन्धमें दादाभाई नौरोजी, विलियम वेडरर्बन और अन्य व्यक्तियोंको पत्र।

१३ नवम्बर : 'नेटाल मर्क्युरी' और औपनिवेशिक सचिवको पत्र लिखकर इस आरोप का प्रतिवाद किया कि प्रवासी-प्रतिबन्धक कानूनका उल्लंघन करने के संगठित प्रयत्न किये जा रहे हैं।

१५ नवम्बर : इसी विषयपर 'नेटाल मर्क्युरी' को पत्र।

१८ नवम्बर : इसी विषयपर औपनिवेशिक सचिवको पत्र।

९ दिसम्बर : एक ईसाई मिशनकी सभामें सम्मिलित और एक पारसी दाता (रुस्तमजी) की ओरसे एक टंकीका दान।