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सम्पूर्ण गांधी वाङ् मय


प्राथियोंने उपर्युक्त विधेयकोंकी तफसीलवार मीमांसा करने का प्रयत्न नहीं किया है। कारण, प्रार्थियोंके नम्र मतसे, विधेयकोंके सिद्धान्त ब्रिटिश संविधानकी भावनाओंके—और १८५८ की घोषणाकी भावनाओंके भी—इतने निहायत विरोधी हैं कि तफसीलोंकी मीमांसा करना व्यर्थ मालूम होता है।

फिर भी, यह तो स्पष्ट है कि अगर इन विधेयकोंका निषेध नहीं किया गया तो नेटाल भारतीयोंको उत्पीड़ित करने में ट्रान्सवालसे कहीं आगे बढ़ जायेगा। प्रवासीकानूनके अनुसार, अंग्रेजी लिखना-पढ़ना जाननेवाले थोड़े-से भारतीयोंको छोड़कर शेष नेटालमें प्रवेश नहीं कर सकते, हालाँकि वे बिना रुकावटके ट्रान्सवालमें जा सकते हैं। फेरीवालों को नेटालमें फेरी लगाकर माल बेचने का परवाना नहीं मिल सकता, हालाँकि ट्रान्सवालमें वे अधिकारपूर्वक पा सकते हैं। ऐसी हालतोंमें, प्राथियोंको विश्वास है, अगर और कुछ नहीं किया जाता तो नेटालको भारतीय मजदूर भेजना तो बन्द कर ही दिया जायेगा। और इस प्रकार एक महाविसंगति—कि नेटाल भारतीयोंकी उपस्थितिसे लाभ तो सब उठा लेता है, किन्तु उन्हें देनेको कुछ भी तैयार नहीं है—दूर कर दी जायेगी।

गिरफ्तारीकी शक्यतासे गैर-गिरमिटिया भारतीयोंका संरक्षण करनेवाले विधेयक[१] का मंशा उपनिवेशकी भारतीय-विरोधी चीख-पुकारका जवाब देना नहीं है। उसका आविर्भाव सरकार और कुछ भारतीयों के बीच हुए अमुक पत्र-व्यवहारसे हुआ है। कभीकभी भारतीय प्रवासी-कानूनके मातहत गैर-गिरमिटिया भारतीयोंको गिरमिटिया भगोड़े मानकर गिरफ्तार कर लिया जाता है। इस असुविधासे बचने के लिए कुछ भारतीयोंने सरकारसे निवेदन किया कि कुछ ऐसा किया जाये जिससे यह असुविधा कमसे-कम हो। सरकारने कृपा करके एक घोषणा कर दी। उसके द्वारा प्रवासी-संरक्षकको अधिकार दिया गया कि वह स्वतन्त्र भारतीयोंको इस आशयके प्रमाणपत्र दे दे कि प्रमाणपत्र रखनेवाला व्यक्ति गिरमिटिया नहीं है। यह एक अस्थायी कार्रवाई थी। वर्तमान विधेयक का मंशा उसकी जगह लेना है। प्रार्थी इस विधेयकको पेश करने में सरकारके अच्छे इरादोंको मंजूर करते है। परन्तु उपधारा ३[२] के द्वारा पुलिसको ऐसे किसी भी भारतीयको गिरफ्तार करने का अधिकार दे दिया गया है, जिसके पास परवाना न हो। अगर पुलिस गैरकानूनी गिरफ्तारी भी कर ले तो उसे दण्ड न दिया जायेगा। विधेयकका मंशा निस्सन्देह भलाई करने का है। परन्तु, प्राथियोंको भय है कि यह उपधारा उसकी सारी भलाईको हर लेती है और उसे अत्याचारके एक यंत्रका रूप दे देती है। परवाने निकालना अनिवार्य नहीं है और यह माना गया है कि केवल गरीब वर्गके भारतीय परवानेकी धाराका लाभ उठायेंगे। पहले भी काफी झंझट केवल इसीलिए उठ खड़ा हुआ था कि अफसर गिरफ्तारियाँ करने में जरूरत से ज्यादा उत्साहसे काम लेते थे। अब तो तीसरी धारासे मनचाहे तरीकेपर किसी भी भारतीयको बिना दण्ड-भयके गिरफ्तार कर लेनेकी उन्हें छूट ही मिल गई है। इसके

  1. विधेयकके पाठके लिए देखिए पृ॰ ३०२–३।
  2. अधिनियममें इस उपधाराको चौथी उपधारा बनाया गया था। देखिए पृ॰ ३०२–३