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प्रर्थनापत्र : उपनिवेश-मंत्रीको

ले—भारतीय मजदूरोंका प्रवास या तो प्रतिबन्ध-रहित, या बिलकुल नहीं। सम्भव है, यह सिर्फ एक स्थानिक खयाल हो। परन्तु हम समझते हैं, यह कहने में हम बहुत गलती नहीं करते कि यदि मामला उलट दिया जाये तो हम भी ठीक यही जवाब देंगे। यह तर्क अनुचित न होगा कि यदि उपनिवेश को अपने कल्याणके लिए भारतीयोंके किसी एक वर्गको आनेसे रोक देना आवश्यक मालूम होता है तो अगर-भारत सरकार भी अपने भलेके लिए उसे दूसरे वर्गके भारतीय प्रवासियोंको ले जानेसे रोक दे, तो वह शिकायत नहीं कर सकता।—'नेटाल एडवर्टाइज़र', ५–४–९७।

हम पूछते हैं, क्या किसी भी ब्रिटिश उपनिवेशने इतना कठोर और व्यापक कानून पास किया है? फिर हमारे-जैसे उपनिवेशके लिए, जो प्रगति और स्वतन्त्रताका इतना दावा करता है, अपनी कानूनी पुस्तकमें ऐसा कानून दर्ज करनेवालों में पहला होना, कोई सम्मानकी बात नहीं है।—'नेटाल एडवर्टाइज़र', २६–२–९७।

यह दलील करना उचित ही होगा कि विधेयकके हेतुका खयाल किया जाये तो वह सिद्धान्तको दृष्टिसे बेईमानी और कपटसे पूर्ण है। क्योंकि, उसका सच्चा ध्येय वह नहीं है जो दिखाई देता है। उसका जाहिरा दावा तो आम प्रवासियोंके आगमनको रोकने का है, परन्तु हर व्यक्ति जानता है कि सचमुच उसका ध्येय एशियाइयोंके आगमनको रोकना है।—'नेटाल एडवर्टाइज़र', २६–२–९७।

हम जो कुछ चाहते हैं, उसे एक ईमानदारीके, न्यायपूर्ण और निष्कपट कानून द्वारा प्राप्त करें, जिसका मंशा वास्तविक प्रश्नको अस्पष्ट, अव्यावहारिक और गैर-ब्रिटिश प्रतिबन्धोंकी घटाओंसे ढंक देना न हो। जबतक हम यह नहीं कर पाते, तबतक सरकार और म्युनिसिपैलिटियोंके लिए अपनी शक्ति लगाने को बहुत-सा क्षेत्र है। वे स्थानिक नियम बनाने में अपनी शक्ति लगा सकती हैं। इससे जिन बुराइयोंको शिकायत की जाती है, उन्हें अधिकसे-अधिक घटा देनेकी दिशामें बहुत मदद मिलेगी।—'नेटाल एडवर्टाइज़र', १२–३–९७।

कोई सरकार या विधानमण्डल जिन नितान्त, घृणित चालबाजियोंमें शामिल हो सकता है, उनमें से ही एकका परिचायक है नेटाल प्रवासी कानून।—'स्टार', २०–५–९७।

अबसे १८९७ के अधिवेशनको उस नितान्त आपत्तिजनक कानूनके जन्मदाताके रूपमें पहचाना जायेगा, जो कुछ बातोंमें ट्रान्सवालकी फोक्सराट [संसद] के गत वर्षके कानूनसे[१] भी बदतर है। ट्रान्सवालका वह कानून भी इस

  1. यह उल्लेख ट्रान्सवाल परदेशी कानून (एलिअन्स ऐक्ट) का है।
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