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सम्पूर्ण गांधी वाङ् मय

इस आधार मात्रपर, उनपर इस तरहके कानूनोंके साथ जुड़ी रहनेवाली वे शर्तें लागू नहीं होतीं, जिनके कारण कानूनका प्रयोग कुछ लोगोंपर या कुछ समयके लिए नहीं होता। इनकी रचना इस प्रकार की गई है कि इनका प्रयोग सबपर और जिस-किसीपर भी किया जा सकता है। इसलिए इनके विरुद्ध यह शिकायत नहीं की जा सकती कि ये व्यापक नहीं हैं। यह साफ-साफ स्वीकार कर लेनमें कोई हानि नहीं कि ये विधेयक थोड़े-बहुत आपत्तिजनक है। परन्तु तीन रोगोंमें तीव्र औषधका ही प्रयोग करना पड़ता है। यह खेदका विषय है कि ऐसे कानून बनाने पड़ रहे हैं, परन्तु इन्हें बनाने की आवश्यकता निर्विवाद है। और ऐसे कानूनोंका निर्माण कितना ही अप्रिय क्यों न हो, यह एक आवश्यक कर्त्तव्य है और इसका पालन करना ही चाहिए। संगरोधसे सम्बद्ध कानूनोंमें संशोधन करनेवाला विधेयक सचमुच असाधारण है, परन्तु जिन देशोंमें प्लेग फैला हुआ है, उनके कारण असाधारण उपाय करने की आवश्यता भी पड़ गई थी। हमें भयंकर रोगोंसे अपना बचाव करना हो तो साधारण उपायोंसे बढ़कर कुछ करना आवश्यक है।

इसी पत्रने, प्रवासी-प्रतिबन्धक विधेयकपर उठाई गई आपत्तियोंका उत्तर देते हुए, अपने ३० मार्च १८९७ के अग्रलेखमें कहा है :

जो लोग इस विधेयक (अर्थात् प्रवासी-प्रतिबन्धक विधेयक) को इस कारण आपत्तिजनक बतलाते हैं कि यह सीधा और सच्चा नहीं है, वे कहते हैं कि एक विधेयक विशेष रूपसे एशियाइयोंके विरुद्ध पास करना चाहिए, हमें "दीर्घकालिक वैधानिक आन्दोलन" आरम्भ कर देना चाहिए, और तबतक हमें अपनी रक्षा संगरोध-अधिनियम द्वारा करनी चाहिए। परन्तु इस मार्गको असंगति स्पष्ट है। इसका अभिप्राय यह निकलता है कि हम प्रवासीप्रतिबन्धक विधेयकके सम्बन्धमें तो असाधारण ईमानदारी बरतना चाहते हैं, परन्तु हमें संगरोधक अधिनियमसे अनुचित लाभ उठानेमें तनिक भी संकोच नहीं है। भारतीय प्रवेशार्थियोंको नेटालमें उतरने से यह कहकर रोकना कि वे अपने देशके जिस जिलेसे आ रहे हैं उससे हजार-हजार मील परे तक भयंकर संक्रामक रोग फैला हुआ है, उतना ही कुटिलतापूर्ण है जितना कि प्रवासीप्रतिबन्धक विधेयकके अनुसार कार्रवाई करना।

इस प्रकार संगरोध-विधेयकका प्रयोजन नेटालमें भारतीयोंके प्रवेशको प्रत्यक्ष रूपसे रोकना है, और इसीलिए प्रार्थी सम्मानपूर्वक उसका प्रतिवाद कर रहे हैं। यदि कोई भारतीय, नेटाल आते हुए किसी जर्मन जहाजमें जंजीबारसे सवार होकर यहाँ पहुँचे तो उसे यहाँ उतरने से रोक दिया जायेगा और अन्य सब यात्री बिना किसी कठिनाईके उतर जायेंगे। यह भेद-भाव क्यों होने दिया जाये? यदि उस भारतीय द्वारा उप