ओरसे एक सज्जन इंग्लैंड जानेवाले हैं।[१] वे भारतीयोंसे सहानुभूति रखनेवालों तथा साधारण जनताके सामने और, जरूरत हो तो, श्री चेम्बरलेनके सामने भी भारतीयोंका दृष्टिकोण पेश करेंगे। उन्हें मार्ग-व्यय और दूसरे खर्चके अलावा, उनकी सेवाओंके लिए कोई पुरस्कार नहीं दिया जायेगा। यह कथन कि उपनिवेशके खिलाफ प्रमाण इकट्ठे किये जा रहे हैं, बड़ा बेढंगा है और यह सच नहीं है, इसीलिए इसे छद्म नामसे लिखा गया है। बेशक, जानेवाले सज्जनको भारतीय प्रश्नकी पूरी जानकारी दे दी जायेगी। मगर यह बात तो अखबारोंमें निकल ही चकी है। भारत कभी यह इच्छा नहीं रही, और न अब है, कि वे अपने साथ यूरोपीयोंके निष्ठुर व्यवहार और सामान्य शारीरिक दुर्व्यवहारके खिलाफ मामला तैयार करें। वे यह भी साबित करना नहीं चाहते कि नेटालमें गिरमिटिया भारतीयोंके साथ दूसरे स्थानों की बनिस्बत बदतर बरताव किया जाता है। इसलिए अगर उपनिवेशके खिलाफ प्रमाण एकत्रित करने की बात ऐसा कोई खयाल पैदा करने के मंशासे कही गई हो तो वह निराधार है।
आपका, आदि,
मो॰ क॰ गांधी
- [अंग्रेजीसे]
- नेटाल मर्क्युरी, १६-४-१८९७
४७. पत्र : फ्रान्सिस डब्ल्यू॰ मैक्लीनको
वेस्ट स्ट्रीट,डर्बन
७ मई, १८९७
माननीय सर फ्रान्सिस डब्ल्यू॰ मक्लीन, नाइट
अध्यक्ष केन्द्रीय अकाल-पीड़ित सहायक समिति
अकाल-निधिमें चन्देके लिए डर्बनके मेयरके नाम आपका तार जैसे ही पत्रोंम प्रकाशित हुआ, वैसे ही डर्बनके भारतीयोंने चन्देकी एक सूची जारी कर देना अपना
- ↑ उल्लेख मनसुखलाल हीरालाल नाजरका है, जिन्हें इंग्लैंड भेजा गया था और जिन्होंने वहाँ जाकर दक्षिण अफ्रीकाके भारतीयोंकी समस्याओंके सम्बन्धमें लोगोंको अच्छी जानकारी दी और इस तरह मूल्यवान काम किया।