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दक्षिण आफ्रिकावासी ब्रिटिश भारतीयोंकी कष्ट-गाथा


लगभग आठ महीने हुए कोई २० भारतीय, जो शुद्ध मजदूर थे, अपने सिरों पर शाक-सब्जीकी टोकरियाँ लेकर डर्बनके बाजार जा रहे थे। उनकी टोकरियोंसे साफ जाहिर था कि वे आवारा नहीं हैं। उन्हें ४ बजे सुबह उसी कानूनके अन्तर्गत गिरफ्तार कर लिया गया। पुलिसने बड़ी सरगर्मीसे मुकदमा चलाया। दो दिनकी सुनवाईके बाद मजिस्ट्रेटने उन्हें छोड़ दिया। परन्तु उन बेचारोंको कितनी कीमत चुकानी पड़ी! वे अपनी दिन-भरकी कमाईकी आशा अपने कन्धोंपर ढो रहे थे। वह तो गई ही, ऊपरसे तड़के उठकर काममें लग जाने के साहसके लिए उन्हें, मेरा खयाल है, दो दिनतक जेलमें पड़े रहना पड़ा। इस सारे सौदेमें अटर्नीका जो मेहनताना चुकाना पड़ा सो अलग! परिश्रमका कितना उपयुक्त पुरस्कार! और श्री चेम्बरलेन सच्ची शिकायतोंके उदाहरण चाहते हैं!

नेटालमें परवानेका नियम है। रात हो या दिन, अगर कोई भारतीय अपना परवाना दिखाकर यह नहीं बता सकता कि वह कौन है तो उसे गिरफ्तार किया जा सकता है। इसका उद्देश्य गिरमिटिया भारतीयोंको काम छोड़कर भागने से रोकना और उनको पहचानने की सहूलियत करना है। इस हदतक, में मानता हूँ, यह जरूरी है। परन्तु कानूनका अमल जिस तरह होता है वह अत्यन्त सतापजनक है, और हमें उसकी जोरदार शिकायत है। अगर क्रूरताकी भावना न हो तो स्वतः उस कानूनसे कोई अन्याय होना जरूरी नहीं है। कानूनके अमलके सम्बन्धमें समाचार-पत्र क्या कहते हैं, उनकी ही भाषामें सुनिए। 'नेटाल एडवर्टाइजर' के १९ जून, १८९५ के अंकमें इस विषयपर निम्नलिखित पंक्तियाँ प्रकाशित हुई थीं :

केटो मेनरके[१] काश्तकारोंको १८९१ के कानून २५ के खण्ड ३१ के अनुसार जिस तरीकेसे गिरफ्तार किया जाता है, उसकी कुछ जानकारी मैं आपको देना चाहता हूँ। जब वे अपनी जमीनपर घूमते-फिरते होते हैं उस समय पुलिस वहाँ पहुँचती है और उनसे परवाने दिखलाने को कहती है। काश्तकार अपनी पत्नियों या सम्बन्धियोंको परवाने लाने के लिए आवाज देते हैं। परन्तु उनके लेकर आने के पहले ही पुलिस उन भारतीयोंको थानेकी ओर घसीटना शुरू कर देती है। थानेके रास्तेमें परवाने ले जाकर दिये जाते हैं तो पुलिस उनकी ओर देख-भर लेती है और फिर उन्हें जमीनपर फेंक देती है। वह गिरफ्तार व्यक्तियोंको थाने में ले जाती है। उन्हें रात-भर हवालातमें रखा जाता है और सुबह उनसे हवालातको कालकोठरी साफ कराई जाती है। बादमें उन्हें मजिस्ट्रेटके सामने पेश किया जाता है। मजिस्ट्रेट उनकी सफाई सुने बिना ही उनपर जुर्माना कर देता है। वे संरक्षकके[२] पास जाकर फरियाद करते हैं, तो वह उनसे मजिस्ट्रेटके पास जाने को कह देता है और (पत्र-लेखक कहता है)

  1. डर्बनका एक उपनगर।
  2. भारतीय प्रवासियोंका संरक्षक।