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सम्पूर्ण गांधी वाङ् मय

निरंकुश कार्य माना जायेगा। अगर ब्रिटिश राज्यमें ऐसा हो तो वह ब्रिटिश नाम और ब्रिटिश संविधानके लिए अपमानजनक होगा। ब्रिटिश संविधानको तो दुनियामें सबसे शुद्ध माना जाता है, और यह ठीक ही है। हमारा निवेदन है कि ब्रिटिश शासनके स्थायित्वके लिए और सम्राज्ञीकी तुच्छातितुच्छ प्रजा भी जिस सुरक्षाकी भावनाका सुख भोगती है, उसके लिए ऐसे कानूनसे ज्यादा संकटजनक और कोई चीज नहीं हो सकती, जो ब्रिटिश राज्यके उच्चतम न्यायालयके सामने अपनी सच्ची या मानी हई शिकायतें पेश करने के प्रजाके अधिकारको छीनता हो। ब्रिटिश न्यायालयोंने तो कठिनसे-कठिन कसौटीके समयमें भी अपनी पूर्ण निष्पक्षताकी कीति सुरक्षित रखी है। इसलिए प्रार्थियोंका नम्र निवेदन है कि इस विधेयकके बारेमें यह सम्माननीय सदन कोई भी निर्णय क्यों न करे, प्रस्तुत उपधाराको वह एकमतसे नामंजूर कर दे।

प्रवासी-प्रतिबन्धक विधेयककी वह उपधारा, जिसके अनुसार यूरोपीय भाषामें फॉर्म भरनेकी[१] जरूरत होती है, विधेयकको एक वर्ग-विशेषसे सम्बन्ध रखनेवाला रूप दे देती है। प्रार्थियोंके नम्र मतसे यह भारतीयोंके प्रति अन्याय है। वर्तमान भारतीय प्रवासियोंके हितार्थ प्रार्थियोंका निवेदन है कि उपधारामें संशोधन करना जरूरी है, क्योंकि ज्यादातर सम्पन्न भारतीय घरेलू नौकरोंको भारत से लाते हैं। वे कुछ निश्चित वर्षों के बाद कामसे मुक्त हो जाते हैं और उनकी जगहोंपर दूसरे आ जाते हैं। इस तरीके से उपनिवेशम भारतीयोंकी संख्या तो नहीं बढती, फिर भी इससे भारतीयोंको लाभ होता है। ऐसे नौकरोंके लिए अंग्रेजी या कोई दूसरी यूरोपीय भाषा जानना सम्भव नहीं है। वे किसी तरह यरोपीयोंके प्रतिस्पर्धी भी नहीं होते। प्राथियों का निवेदन है कि अगर किसी दूसरे कारणसे नहीं, तो कमसे-कम इसी कारणसे उपधारामें संशोधन कर दिया जाये, ताकि उस वर्गके भारतीयोंपर उसका प्रभाव न पड़े। २५ पौंडी उपधारा भी इसी सिद्धान्तके अनुसार आपत्तिजनक है।[२] उपनिवेशके वर्तमान भारतीयोंके हितोंका विचार, और नहीं तो ऐसी बातोंमें ही सही, सहानुभूतिके साथ किया जाना जरूरी है।

जहाँतक गैर-गिरमिटिया भारतीयोंके संरक्षण विषयक विधेयकका[३] सम्बन्ध है, प्रार्थी सरकारको उसके भले इरादोंके लिए हृदयसे धन्यवाद देते है—खास तौरसे इसलिए कि विधेयककी रचना इस विषयमें भारतीय समाजके कुछ सदस्यों और सरकारके बीच पत्र-व्यवहारके फलस्वरूप हुई है। परन्तु सरकारने जो उपकार किया है, वह पाँचवीं उपधारासे[४] बिलकुल व्यर्थ हो जायेगा। इस उपधाराके अनुसार, उन

  1. देखिए उपधार ३ (क), पृ॰ २९७, और मसविदेके लिए सूची ख, पृ॰ ३००।
  2. उपधारा ३ (ख) की आर्थिक योग्यता के बदले बादमें एक अन्य उपधारा मंजूर कर ली गई थी‌। उसका सम्बन्ध 'कंगालों' से था। देखिए पृ॰ २९६–२९७।
  3. देखिए पृ॰ २५९ और पृ॰ २९४–९५ और विधेयक का जो पाठ मंजूर किया गया था उसके लिए देखिए पृ॰ २०२–३।
  4. व्यवस्थाएँ अधीनियम की उपधारा ४ में है। देखिए पृ॰ ३०२–३।