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दक्षिण आफ्रिकावासी ब्रिटिश भारतीयोंकी कष्ट-गाथा

उस हिस्सेकी सर्दी भी कोई मजाक नहीं है। एक अन्य प्रमुख भारतीय सज्जन हाजी मोहम्मद हाजी दादा कुछ दिन पहले प्रिटोरियासे चार्ल्सटाउनकी यात्रा कर रहे थे। उन्हें घोडागाड़ीसे जबरन बाहर निकाल दिया गया और उन्हें तीन मीलका रास्ता पैदल तय करना पड़ा। कारण यह था कि उनके पास परवाना— उसका जो भी मतलब हो—नहीं था।[१]

श्री रस्तमजी नामक एक पारसी सज्जन, जिनकी उदारता की ख्याति उनकी पूंजी से भी कहीं बढ़-चढ़कर है, अपने स्वास्थ्य की खातिर डर्बन में टर्किश स्नान नहीं कर सके; हालाँकि उक्त सार्वजनिक स्नानगृह डर्बन कार्पोरेशनकी सम्पत्ति है और जिसे श्री रुस्तमजी अन्य करदाताओं की तरह ही कर देते हैं। डर्बनको फील्ड स्ट्रीटमें गत वर्ष क्रिसमसके समय कुछ नौजवानोंने भारतीय वस्तु-भण्डारोंमें जलते हुए पटाखे फेंककर उन्हें कुछ हानि पहुँचाई थी। अभी, तीन महीने पहले, उसी सड़कके एक अन्य भारतीय वस्तु-भण्डारमें कुछ नौजवानोंने गोफनसे सीसेकी एक गोली मारी थी। उससे एक ग्राहक घायल हो गया और उसकी आँख जाते-जाते बची। इन दोनों घटनाओंकी सूचना पुलिस-सुपरिटेंडेंटको दी गई। उन्होंने वादा भी किया कि वे जो-कुछ कर सकेंगे, सो सब करेंगे। परन्तु बादमें उसकी बाबत कुछ और सुनाई नहीं दिया। फिर भी, सुपरिटेंडेंट महाशय एक आदरणीय सज्जन है। वे डर्बनके सब समाजोंका संरक्षण करने को उत्सुक भी हैं। परन्तु अति प्रबल विरोधियोंके सामने वे बेचारे क्या करें? क्या उनके मातहत कर्मचारी बदमाशोंका पता लगाने का कष्ट उठायेंगे? जब घायल व्यक्ति पुलिस-थानेमें गया तब पहले तो पुलिसवाले हँस पड़े और बादमें उन्होंने उससे कहा कि बदमाशोंकी गिरफ्तारीके लिए मजिस्ट्रेटसे वारंट ले आओ। दरअसल, ऐसे मामलोंमें जब पुलिसवाला अपने कर्तव्यका पालन करना चाहता है तब उसे किसी वारंटकी जरूरत नहीं होती। मेरे नेटालसे रवाना होनेके एक ही दिन पहले एक भारतीय भद्र पुरुषका लड़का साफ, बेदाग कपड़े पहने उर्बनके मुख्य मार्गकी पैदलपटरीसे जा रहा था। कुछ यूरोपीयोंने उसे पटरीसे ढकेल दिया। ढकेलने का कारण मनोरंजनके सिवा और कुछ नहीं था। गत वर्ष नेटालके एक गाँव एस्टकोटके मजिस्ट्रेटने कठघरेमें खड़े एक भारतीय कैदीको उससे निकलवा दिया था। उसकी टोपी जबरन उतार दी गई थी और इसे नंगे सिर वापस ले आया गया था। उसका यह सारा विरोध व्यर्थ हुआ था कि टोपी उतारना भारतीय प्रथाके विरुद्ध है और इससे उसकी धार्मिक भावनाओंको भी चोट पहुँचती है। मजिस्ट्रेटपर दीवानी मुकदमा चलाया गया। परन्तु न्यायाधीशोंने फैसला सुनाया कि उसने मजिस्ट्रेटकी हैसियतसे जो-कुछ किया उसके लिए उसपर दीवानी मुकदमा नहीं चलाया जा सकता। जब हमने कानूनका आश्रय लिया उस समय हम जानते थे कि निर्णय यही होनेवाला है। परन्तु हमारा उद्देश्य यह था कि मामलेकी पूरी छानबीन हो जाये। एक समय उपनिवेशमें यह प्रश्न बहुत बड़ा था।

  1. घटनाके विस्तृत विवरणके लिए देखिए खण्ड १ पृ॰ २२५-२६।