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प्रर्थनापत्र : उपनिवेश-मंत्रीको

यूरोपीय कारीगरोंसे नीचे दरजेके हैं (ऊँचे दरजेके भारतीय कारीगर नेटाल आते ही नहीं)। कुछ दर्जी और सुनार भी इस उपनिवेशमें हैं, परन्तु वे केवल भारतीय समाजकी आवश्यकता पूरी करते हैं। जहाँतक भारतीय और यूरोपीय व्यापारियोंमें होडका सवाल है, उसके सम्बन्धमें ऊपर दिये गये उद्धरणोंमें यह ठीक ही कहा गया है कि यह होड़ यदि कुछ है भी तो भारतीयोंको यूरोपीय व्यापारियों द्वारा दी गई भारी सहायताके कारण ही है। और यूरोपीय व्यापारी, भारतीय व्यापारियोंकी सहायता खुशीसे ही नहीं, बल्कि उत्सुकताके साथ करते हैं, इससे प्रकट होता है कि इन दोनोंमें कोई अधिक होड़ नहीं है। सच तो यह है कि भारतीय व्यापारी केवल बिचौलियका काम करते हैं। उनका व्यापार शुरू ही वहाँसे होता है जहाँकि यूरोपीयोंका खत्म हो जाता है। लगभग दस वर्ष पहले भारतीय मामलोंकी हालत जाँचने के लिए जो आयुक्त नियुक्त किये गये थे, उन्होंने भारतीय व्यापारियोंके सम्बन्धमें लिखा था :

हमें निश्चय हो गया है कि यूरोपीय उपनिवेशियोंके मनमें इस उपनिवेशकी सारी ही भारतीय आबादीके विरुद्ध जो खिजलाहट मौजूद है, वह बहुत-कुछ उन अरब व्यापारियोंके कारण है, जो होड़ होनेपर यूरोपीय व्यापारियोंको मात देनेमें सदा ही सफल हो जाते हैं—विशेषतः चावल-जैसी वस्तुओंके व्यापारमें, जिनकी खपत अधिकतर प्रवासी भारतीयोंकी आबादीमें होती है।. . .

हमारी राय है कि ये अरब व्यापारी उन भारतीयोंके कारण नेटालकी ओर आकृष्ट हुए हैं जिन्हें यहाँ प्रवासी-कानूनोंके अनुसार लाया गया है। इस समय इस उपनिवेशर्म बसे हए भारतीयोंकी संख्या ३०,००० है। उन सबका मुख्य खाद्य चावल है। और इन चतुर व्यापारियोंने इस चीजको यहाँ लाने व बेचने के लिए अपनी चतुराई और शक्तिका उपयोग ऐसी सफलतासे किया है कि जहाँ वह कुछ वर्ष पहले २१ शिलिंग प्रति बोरीके भाव बिका करता था, वहाँ १८८४ में उसका मूल्य केवल १४ शिलिंग प्रति बोरी रह गया।...कहा जाता है कि काफिर लोग अरब व्यापारियोंसे अपनी जरूरतको चीजें छह या सात वर्ष पहलेके मूल्योंकी अपेक्षा २५ से ३० प्रतिशततक सस्ते भाव पर खरीद सकते हैं।...

कुछ लोग एशियाई या "अरब" व्यापारियोंपर जो पावन्दियाँ लगवाना चाहते हैं, उनपर विचार करना आयोग (कमिशन) को सौंपे गये कामके दायरेमें नहीं आता। हम यहाँ केवल इतना लिखकर सन्तोष कर लेते हैं कि इन व्यापारियोंका यहाँ आना सारे ही उपनिवेशके लिए लाभदायक सिद्ध हुआ है, और इनके विरुद्ध कोई कानून बनाना, यदि अन्यायपूर्ण नहीं तो अबुद्धिमत्तापूर्ण अवश्य होगा। यह सम्मति हम बहुत अध्ययनके पश्चात् प्रकट कर रहे हैं। (पंक्तियोंको रेखांकित प्रार्थियोंने किया है)... प्रायः ये सभी व्यापारी मुसलमान हैं। ये