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प्रर्थनापत्र : उपनिवेश-मंत्रीको

प्रकारका प्रतिवाद किया जाना चाहिए। इस प्रकारके सुझाव पूर्ण गंभीरतासे दिये जाने लगे कि जिस दिन भारतीयोंका 'कूरलैंड' और 'नादरी' से उतरना स्थिर हो उस दिन यूरोपीयोंकी भीड़को जहाज-घाटपर पहुंचकर यात्रियोंको उतरने से रोक देना चाहिए। इसके लिए तरीका यह सोचा गया था कि यूरोपीयोंकी भीड़ एक-दूसरेके पीछे आदमियोंकी तीन या चार पंक्तियाँ बनाकर खड़ी हो जाये और अगल-बगलवाले आदमी, मुट्ठी में मुट्ठी और बाँहमें बाँह डालकर, उतरनेवालों के सामने एक ठोस दीवार-सी बना दें। परन्तु यह शायद लोगोंमें साधारण चर्चा-मात्र थी। एशियाई-विरोधी भावना भड़की हुई है, इसपर तो संदेह किया ही नहीं जा सकता; और एक अन्य कॉलममें श्री हैरी स्पार्क्सके हस्ताक्षरोंसे प्रकाशित यह विज्ञापन इसका प्रमाण है : "आवश्यकता है, डर्बनके एक-एक मर्दको, एक सभामें हाजिर होनेके लिएअगले सोमवारको, सायंकाल ८ बजे, विक्टोरिया कैफके बड़े कमरे में। सभाका प्रयोजन : एक जुलूसका संगठन करना, जो जहाज-घाटपर जाये और एशियाइयोंके उतारे जानेके विरुद्ध आवाज बुलन्द करे।"

आपके प्रार्थी पहले बता चुके हैं कि कौन-सी घटनाएँ क्रमशः प्रदर्शन संगठित करने का कारण बनीं। परन्तु यहाँ उद्धृत अंशमें प्रदर्शनका तात्कालिक कारण कुछ और ही बतला दिया गया है। इन दोनोंमें अन्तरकी ओर आपके प्रार्थी आपका ध्यान विशेष रूपसे खींचने की अनुमति चाहते हैं। उक्त बयान पत्रोंमें प्रकाशित न होते तो सम्भव है कि प्रदर्शन होते ही नहीं। ये बयान सर्वथा निराधार थे। आपके प्राथियोंका निवेदन है कि यदि ये सत्य होते तो भी प्रदर्शन-समितिका कार्य किसी प्रकार उचित न ठहरता। समितिके सदस्योंने यूरोपीयों, वतनियों, उपनिवेशमें विद्यमान भारतीयों, और अपने तथा श्री गांधीके साथ अन्याय किया : यूरोपीयोंके साथ, क्योंकि उसकी कार्रवाइयोंके कारण यूरोपीयोंमें कानून तोड़नेकी भावना फैल गई; वतनियोंके साथ, क्योंकि बन्दरगाहपर उन लोगोंकी उपस्थितिके कारण—इससे कुछ मतलब नहीं कि उन्हें वहाँ कौन लाया—उनका आवेश तथा उनकी लड़ने-मारनेकी प्रवत्ति भड़कने की सम्भावना हो गई, और ये लोग एक बार भड़क जाते हैं तो के नहीं रहते; भारतीयोंके साथ, क्योंकि उन्हें कठिन परीक्षामें से गुजरना पड़ा और समिति की कार्रवाइयोंके कारण उनके विरुद्ध भावनाएँ बहुत भड़क गईं; अपने साथ, क्योंकि उन्होंने अपने बयानोंकी संचाईको परखे बिना ही कानून और व्यवस्था भंग करने की भयंकर जिम्मेदारी अपने सिर उठा ली; और श्री गांधीके साथ, क्योंकि श्री गांधी और उनके कामोंके विषयमें भारी भ्रम फैला दिये जाने के कारण—निःसन्देह अनजानेमें —उनके प्राण गँवानेकी नौबत आ गई थी। नेटाल आनेवाले यात्रियोंकी संख्या तो ८०० थी ही नहीं, दोनों जहाजोंमें मिलाकर भी लगभग ६०० ही यात्री थे। और उनमें भी नेटाल आनेवाले तो केवल २०० थे। शेष सब डेलागोआ-बे, मारिशस या ट्रान्सवाल जानेवाले थे। इन २०० में से भी १०० नेटालके पुराने निवासी थे जो