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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय


हम यहाँ कह देनेकी इजाजत चाहते हैं कि हमने दक्षिण आफ्रिकाके विभिन्न भागोंमें रहनेवाले भारतीयोंसे अपील की है कि इस विषयमें वे जितना भी कर सके, सो सब करें।

आशा है कि आप इसपर तुरन्त ध्यान देंगे। आपके मूल्यवान समयमें दखल देनेके लिए क्षमा याचनाके साथ,

आपके आज्ञानुवर्ती सेवक

अंग्रेजीकी दफ्तरी नकल (एस॰ एन॰ १९९६) से।

३०. अपील : डर्बनके पादरियोंसे

बीच ग्रोव, डर्बन
६ फरवरी, १८९७

सेवामें. . .

मैं आपको डर्बनके मेयर द्वारा जारी की गई भारतीय अकाल-पीड़ित सहायतानिधिके बारेमें लिखना चाहता हूँ। कल मेयरने नगर-परिषदमें कहा था कि अबतक केवल एक यूरोपीयने चन्दा दिया है। इसकी ओर मैं नम्रतापूर्वक आपका ध्यान आकर्षित करता हूँ।

शायद मुझे भारतके उन करोड़ों पीड़ितोंके कष्टोंका वर्णन करना न होगा, जिन्हें सिर्फ काफी खुराक न मिलने के कारण मौतके मुंहमें समाना पड़ सकता है। मेरा निवेदन है कि आप ३ तारीखके 'मर्क्युरी' में प्रकाशित मेरा पत्र[१] पढ़ लें। उससे आपको कुछ कल्पना हो जायेगी कि भारतपर इस समय कितना भारी संकट छाया हुआ है।

मैं मानता हूँ कि [कल][२] गिरजे के प्रवचन-पीठसे इस विषयकी चर्चा और श्रोताओंसे धनकी अपील करना भारतके करोड़ों पीड़ितोंके प्रति जनताकी दानशील सहानुभूति जाग्रत करने में बहुत सहायक होगा।

आपका आज्ञानुवर्ती सेवक,
मो॰ क॰ गांधी अंग्रेजी

की दफ्तरी प्रतिकी फोटो-नकल (एस॰ एन॰ ३६४३) से।

  1. स्पष्टः गांधीजी का संकेत अपने २ फरवरीके पत्रकी ओर है, जो उक्त समाचार पत्र में ४ फरवरी को प्रकाशित हुआ था। देखिए पृ॰ १४३–४४।
  2. मूल अंग्रेजी प्रतिमें एक शब्द पढ़ा नहीं जाता। सम्भवः वह 'टुर्मोरो' (आगामी काल) है। ७ फरवरी को रवि वार था।