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सम्पूर्ण गांधी वाङ् मय


लोग मर गये। मौसम साधारणतः स्वास्थ्यकर होनेपर जो मृत्यु-संख्या होती वह इसमें से घटा कर दी गई है। इस संकटमें हुआ कुल खर्च ११,०००,००० पौंडसे ज्यादा है।

आसार ऐसे दीखते हैं कि उग्रतामें वर्तमान अकाल पहलेके सब अकालोंको मात देनेवाला होगा। संकट अभी ही उग्र हो चुका है। परन्तु गरमीका समय सबसे भीषण होगा और वह अभी आनेको है। मेरे खयालसे यह पहला ही मौका है कि भारतने ब्रिटिश उपनिवेशोंके सामने हाथ फैलाया है। आशा है कि इसका उत्तर उदारतापूर्वक दिया जायेगा। कलकत्ताकी केन्द्रीय अकाल-सहायता समितिने उपनिवेशोंसे प्रार्थना करने के पहले अन्य सभी साधनोंको पूरा-पूरा उपयोग कर ही लिया होगा। और अगर उत्तर हमारी आतुरतापूर्ण प्रार्थनाके अनुरूप न हुआ तो बड़ी दयनीय बात होगी।

बात सच है कि दक्षिण आफ्रिकामें भी परिस्थितियाँ कुछ विशेष सुखद नहीं हैं। फिर भी यह तो मानना ही होगा कि भारत और दक्षिण आफ्रिकाके संकटमें कोई तुलना नहीं हो सकती। और, इसलिए, मैं भरोसा करने का साहस करता हूँ कि नेटाल के धनिक भारतमें भूख से मरते हुए अपने करोड़ों बन्धु-प्रजाजनोंकी सहायतामें अपने खीसे खाली कर देंगे। अगर उनके सामने दक्षिण आफ्रिकाके ही गरीबोंकी सहायताका सवाल हो तो भी उससे उनके इस दानमें कोई रुकावट नहीं आयेगी। मुझे विश्वास है, इंग्लैंडम और उपनिवेशोंमें, सर्वत्र, ब्रिटिश परोपकारभावना भी प्रबल हो उठेगी। पिछले अवसरोंपर जब-जब मानव-जातिपर संकट आया है, यह भावना प्रबल होती रही है। इस बातका कोई खयाल नहीं हुआ कि संकट किस स्थानपर है और कितनी बार आया है।

आपका,

मो॰ क॰ गांधी

[अंग्रेजीसे]
नेटाल मयुरी, ४-२-१८९७