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सम्पूर्ण गांधी वाङ् मय

कि उपनिवेशने आजकल जो रुख अख्तियार कर रखा है वह हर तरहसे अनुचित है। मैं उपनिवेशियोंको यह भी समझा देना चाहता हूँ कि मैंने जो काम हाथमें ले रखा है, उसके लिए मैंने जो कुछ भी किया है, वह उनके हितकी दृष्टिसे भी लाभदायक है। बेशक, उपनिवेशमें भारतीयोंके स्वतन्त्रतापूर्वक आनेमें रुकावट डालनेके लिए जो भी कानून बनाया जाये, उसका विरोध तो हमें करना ही चाहिए। इस विषयमें स्वभावतः मेरी अपेक्षा रहेगी कि भारत-सरकारकी तरफसे मुझे पूरा समर्थन मिले। स्वभावतः प्रवासी भारतीयोंकी भरमार हो जायेगी यह खतरा तो बिलकूल है ही नहीं। 'कूरलैंड' एक बार अपनी फेरियोंमें करीब सौ नये आगन्तुकोंको वापस भारत ले गया था। इसलिए मैं निवेदन करना चाहता हूँ कि नेतागण उपनिवेशके सामने कोई कठोर नीति पेश करें उससे पहले अपने तथ्योंकी जानकारी पक्की कर लें। स्वतन्त्र भारतीयोंकी संख्यामें इधर कोई वृद्धि नहीं हुई है। उपनिवेशमें इन आनेजानेवालों की संख्याका नियन्त्रण पूर्ति, और माँगका कानून ही कर रहा है।

श्री गांधीने संवाददातासे अनुरोध किया कि वह 'एडवर्टाइज़र' के सम्पादकको उनकी तरफसे धन्यवाद दे कि उन्होंने उनको [श्री गांधीको] अपने विचार प्रकट करने का अवसर प्रदान किया।

श्री गांधीसे विदा लेते समय संवाददाताने उन्हें बताया कि इस समय डर्बनको जनतामें उनके प्रति क्षोभ है, इसलिए उनको अपनी सुरक्षाके लिए जहाजसे उतरने के बारेमें बहुत ही सावधान रहना चाहिए—क्योंकि श्री गांधी उतरने के बारेमें कृतनिश्चय थे।

[अंग्रेजीसे]
नेटाल एडवर्टाइज़र, १४—१—१८९७