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भेंट : 'इंग्लिशमैन' के प्रतिनिधिको

शैक्षणिक योग्यताकी शर्त डाल दी जाये। यह प्रत्येक भारतीय मतदाताकी योग्यताकी अच्छी कसौटीका काम दे सकेगी। परन्तु यह सुझाव भी तिरस्कारपूर्वक ठुकरा दिया गया है। इस सबसे यही सिद्ध होता है कि उनका एकमात्र उद्देश्य भारतीयोंका अपमान करना और उन्हें हर प्रकारके राजनीतिक अधिकारसे वंचित रखना है, ताकि वे हमेशाके लिए गुलाम और लाचार बने रहें। इसके बाद वह तीन पौंडवाला कमरतोड़कर है जो अपनी शर्तकी अवधि पूरी करने के बाद उपनिवेशमें रहनेवाले हर छोटे-बड़े भारतीयपर लाद दिया गया है। फिर, समाजमें किसी भारतीयकी कोई मान-मर्यादा नहीं है। सचमुच तो उसे एक सामाजिक कोढ़ी—अछूतकी तरह सदा दूर रखा जाता है। उसे हर तरहसे अपमानित और तिरस्कृत किया जाता है। चाहे उसका दरजा कुछ भी हो, सारे दक्षिण आफ्रिकामें भारतीय एक कूली ही माना जाता है और उसके प्रति ऐसा ही व्यवहार होता है। रेलोंमें केवल एक ही वर्ग में उसे सफर करना पड़ता है और यद्यपि नेटालमें तो उसे सड़ककी पटरीपर चलने की इजाजत है, परन्तु दूसरे राज्योंमें यह भी नहीं है।

[प्र॰] इन दूसरे राज्योंमें भारतीयोंके साथ कैसा व्यवहार होता है, यह आप बतायेंगे?

[उ॰] जूलूलैंडकी नोंदवेनी और एशोवे नामक बस्तियोंमें कोई भारतीय जमीन नहीं खरीद सकता।

[प्र॰] यह मनाही क्यों की गई?

[उ॰] सुनिए। जूलूलैंडमें सबसे पहले मेलमॉथ शहर बसाया गया था। वहाँ ऐसे कोई नियम नहीं थे। अतः जमीन खरीदने के अधिकारका लाभ उठाकर वहाँ भारतीयोंने कोई २,००० पौंड कीमतकी जमीन खरीद ली। इसके बाद मनाही करनेवाला कानून बना और उसे बादमें स्थापित शहरोंपर लागू किया गया। यह भी विशुद्ध व्यापार-सम्बन्धी ईर्ष्या ही थी। गोरोंको यह भय हो गया कि नेटालकी भाँति भारतीय जूलू लैंडमें भी व्यापारके लिए घुस जायेंगे।

ऑरेंज रिवर फ्री स्टेटमें तो उन्हें काफिर जातिके साथ जोड़कर उनका रहना ही असम्भव कर दिया गया है। वहाँ कोई भारतीय अचल सम्पत्ति नहीं रख सकता और प्रत्येक भारतीय निवासीको सालाना दस शिलिंग कर देना होता है। इन मनमाने कानूनोंमें कितना अन्याय भरा पड़ा है इसकी कल्पना इसीसे आपको हो जायेगी कि जब ये कानून जारी हुए तब सारे भारतीयोंको—जिनमें अधिकांश व्यापारी थे राज्यसे जबरदस्ती बाहर निकाल दिया गया, और उन्हें कुछ भी मुआवजा नहीं दिया गया, जिसके फलस्वरूप उन्हें कोई ९,००० पौंडकी हानि उठानी पड़ी। ट्रान्सवालकी हालत शायद ही इससे अच्छी कही जायेगी। वहाँ ऐसे कानून बन गये है जो भारतीयोंको उनके लिए बनी बस्तियोंको छोड़कर अन्यत्र कहीं भी रहने और व्यापार करने से मना करते हैं। परन्तु इस दूसरे मुद्देपर अभी अदालतोंमें मामले चल रहे हैं। एक ७ पौंडका पंजीकरण-शुल्क देना पड़ता है। रातके नौ बजेवाला कानून है