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आठ

मछलियाँ तथा अन्य वस्तुएँ फेंकी गई थीं, जिनसे उनकी आँखमें चोट आई, कान कट गया और पगड़ी सिरसे अलग जा गिरी।" उत्तेजित प्रदर्शनकारियोंके रोष, सरकारका प्रतिनिधित्व करनेवाले प्रमुख अधिकारियोंके रुख और अल्प संख्यामें होते हए भी ब्रिटिश लोकमतके अधिक जिम्मेदार वर्गने जातीय असहिष्णुता तथा अन्यायके ज्वारके विरुद्ध जो दृढ़ रुख अख्तियार किया, उसके बारेमें स्थानीय पत्रोंसे काफी सामग्री उसमें उद्धृत की गई है। प्रार्थनापत्रका अन्त इस जोरदार निवेदनसे होता है कि नेटालवासी भारतीयोंके प्रति सरकारी नीतिपर फिरसे बुनियादी रूपमें विचार किया जाये, ब्रिटिश साम्राज्यमें भारतीयोंका दरजा क्या है इस सम्बन्धमें नयी घोषणा की जाये और नेटाल-सरकार द्वारा प्रस्तावित भारतीय-विरोधी कानूनोंको वापस लिया जाये।

भारतीयोंको दक्षिण आफ्रिकामें जो-कुछ भोगना पड़ रहा था उससे ब्रिटिश न्यायके प्रति गांधीजी की आस्थापर अबतक आँच नहीं आई थी। इसलिए रानी विक्टोरियाके प्रति भारतीयोंके हृदयोंमें निष्ठा और भक्तिकी जो भावना थी उसे व्यक्त करने के लिए गांधीजी ने रानीकी हीरक-जयन्तीके अवसरका उपयोग किया। सम्राज्ञीके नाम चाँदीकी ढालपर खुदवाये गये अभिनन्दन-पत्र और उसपर गांधीजी-सहित इक्कीस व्यक्तियोंके हस्ताक्षरों और अन्य सम्बद्ध कागज-पत्रोंसे मालूम होता है कि शुरू-शुरूके उस कालमें ब्रिटिश साम्राज्यके प्रति गांधीजी का रुख क्या था।

सन् १८९६-९७ के भीषण भारतीय अकालके समाचारों और सहायता-निधिके संगठनके कारण गांधीजी को अपनी प्रवृत्तियोंकी दिशा अस्थायी रूपसे बदलकर उस मानवधर्मकी पुकारको सार्थक करने में लग जाना पड़ा। वे अपनी स्वाभाविक निष्ठासे चन्दा जुटाने के कार्यमें जुट गये। उन्होंने नेटाल और ट्रान्सवालके ब्रिटिश नागरिकों और धर्मोंपदेशकोंके नाम जो अपीलें निकाली थीं, और सारे दक्षिण आफ्रिकाके भारतीय समाजको जो परिपत्र भेजा था, वे सब भी इस खण्डमें दी हुई अन्य सामग्रीमें सम्मिलित हैं। डर्बन बन्दरगाहपर गांधीजी के खिलाफ जो विरोधी प्रदर्शन हुआ था उसके कानून बनायेगी जिनसे भारतीयोंके नेटालमें प्रवेश करने, व्यापार करने और रहने के अधिकार बहुत सीमित कर दिये जायेंगे। संक्रामक रोग संगरोध विधेयक, व्यापार परवाना विधेयक और प्रवासी विधेयक इसी वचनकी देन थे। इनसे ब्रिटिश साम्राज्यके नागरिकोंके रूपमें भारतीयोंके प्रत्येक अधिकारका हनन होता था। गांधीजी ने इन विधेयकोंके खिलाफ जोरदार अभियान चलाया। खण्डके अन्तिम भागमें पाठक उक्त प्रस्तावित कानूनोंके विषयमें नेटाल विधान मण्डल और साम्राज्य-सरकारको प्रेषित अनेक प्रार्थनापत्र तथा गांधीजी द्वारा दादाभाई नौरोजी, विलियम वेडरबर्न और इंग्लैंड एवं भारतके अन्य अनेक लोकनेताओंके नाम लिखित वैयक्तिक और सामान्य प्रकारके पत्र देखेंगे।

खण्डका यह संशोधित संस्करण विषय-वस्तुकी दृष्टि से १९५९ के संस्करणके समान ही है; अलबत्ता उसका आकार बदल दिया गया है। पूर्ववर्ती संस्करणका शीर्षक १ प्रस्तुत संस्करण १, २ और १३ में विभाजित कर दिया गया है। एक पत्र (शीर्षक संख्या ६) जो प्रथम संस्करणके समय उपलब्ध नहीं था इसमें संकलित कर लिया गया है।