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सात


भारतीयोंके साथ जो अपमानास्पद व्यवहार किया जाता था उसकी जानकारी दक्षिण भारतको देनेके लिए गांधीजी बम्बईसे मद्रास गये। दक्षिण भारतके तमिल-भाषी प्रदेशसे सर्वाधिक प्रवासी नेटाल गये थे। इसलिए, वहाँ जो-कुछ हो रहा था उससे मद्रासके नागरिकोंका गहरा सम्बन्ध था। इसका प्रमाण उस प्रातिनिधिक और तत्पर श्रोता-मण्डलीसे मिला, जिसने गांधीजी का भाषण सुनने के लिए उमड़कर पचैयप्पा भवनको ठसाठस भर दिया था। गांधीजी के मद्रास पहुँचने से कुछ ही पहले नेटालके एजेंट-जनरलने एक वक्तव्य निकाला था। वह उन बातोंके उत्तरमें था जो, बताया गया था, 'हरी पुस्तिका' में गांधीजी ने कही थीं। इसलिए, गांधीजी ने एजेंट-जनरलके वक्तव्यका प्रतिवाद करने के लिए मद्रासकी समाके अवसरका उपयोग किया। उन्होंने अनेकानेक प्रमाण देकर अपने दावेको सिद्ध किया, जिससे उनका मद्रासका भाषण (पृ॰ ७२-९६) उनके भारत-यात्राके अन्य सब भाषणोंसे जोरदार बन गया। उस भाषणकी पूरी प्रति इस खण्डमें प्रकाशित की गई है।

एक असाधारण स्वरूपकी वस्तु भी पाठकोंके सामने रखी जा रही है—अपने कार्यके सम्बन्ध भारतका दौरा करते हुए गांधीजी ने जो खर्च किया था, उसका सविस्तर हिसाब (पृ॰ ११०-२३)। उससे भारतमें उनकी गतिविधि और प्रवृत्तियोंपर प्रकाश पड़ता है। संयोगवश वह रोचक आर्थिक आँकड़ों—उन्नीसवीं सदीके अन्तके भावों और मजदूरीके स्तरोंकी जानकारी भी देता है। किन्तु उसका मुख्य महत्त्व इस बातमें है कि उससे सार्वजनिक धनके तमाम ख़र्चों का उचित हिसाब गांधीजी की चिन्ताका परिचय मिलता है। पाठक देखेंगे कि उसमें आध आना-जैसी छोटी-छोटी रकमें भी शामिल हैं। चारित्र्यकी यह विशेषता, जो उस छोटी उम्रमें दिखलाई पड़ती है, जीवन-भर उनके सार्वजनिक धनके व्यवहारमें स्पष्ट रही।

गांधीजी के जहाजके डर्बन पहुँचने पर उनके सामने आनेवाली विरोधी स्थिति, उनकी हत्याके प्रयत्नकी घटना और उनके इस निर्णयके परिणामस्वरूप कि, जिन लोगोंने उनपर आक्रमण किया था उनके खिलाफ कोई कार्रवाई न की जाये, अखबारों, नेटालकी सरकार और भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेसकी लंदन-स्थित ब्रिटिश समितिके नाम सन्देशोंका ताँता बंध गया। मुलाकातों, तारों और पत्रों द्वारा दिये गये ये सन्देश पाठकोंका परिचय इस खण्डकी सबसे महत्त्वपूर्ण वस्तुसे कराते हैं, जो है—दक्षिण आफ्रिकावासी बत्तीस प्रमुख भारतीयोंके हस्ताक्षरसे तत्कालीन मुख्य उपनिवेश मन्त्री श्री जोजेफ़ चेम्बरलेनको भेजा गया १५ मार्च, १८९७ का ठोस प्रार्थनापत्र (पृ॰ १५०-२५१)। उसमें बहुत विस्तारके साथ उन घटनाओंका वर्णन किया गया है, जिनके कारण नेटालमें भारतीय-विरोधी आन्दोलन छेड़ा गया और जिनके अन्तमें डर्बनके ब्रिटिश नागरिकोंने उनके विरुद्ध एक सार्वजनिक प्रदर्शनका संगठन किया। कुछ लोगोंका प्रस्ताव था कि गांधीजी तथा अन्य भारतीयोंके उतरने को "पूरी तरहसे रोक देनेके लिए" हम लोग मनुष्योंकी एक दीवार बना लें, जो "एकके-पीछे-एक तीन या चार कतारोंकी हो और सब लोग एक-दूसरेके हाथसे-हाथ व भुजासे-भुजा बाँधे हुए हों।" प्रार्थनापत्रमें घर जाते हुए गांधीजी पर किये गये आक्रमणका वर्णन किया गया है, जिसमें उन्हें "ठोकरें मारी गई थीं, चाबुकें लगाई गई थीं और उनपर सड़ी