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सम्पूर्ण गांधी वाङ् मय


महान्यायवादीने उस उपधाराकी चर्चा करते हुए कहा था कि किसी भारतीयको भारत लौटने से या व्यक्ति-कर देनेसे इनकार करनेपर जेल तो नहीं भेजा जा सकता, परन्तु उसकी झोंपड़ीमें कोई कामकी चीज हो तो उसे जब्त किया जा सकता है। हमने स्थानीय संसदमें उस विधेयकका जोरोंसे विरोध किया। वहाँ सफल न होनेपर हमने श्री चेम्बरलेनको एक प्रार्थनापत्र भेजा, जिसमें विनती की गई थी कि या तो विधेयकका निषेध कर दिया जाये, या नेटालको मजदूर भेजना स्थगित कर दिया जाये।

उपर्युक्त प्रस्तावका मंडन दस वर्ष पूर्व किया गया था और नेटालके सबसे प्रतिष्ठित उपनिवेशियोंने उसका घोर विरोध किया था। इसपर भारतीयोंसे सम्बन्धित विविध प्रश्नोंकी जाँचके लिए आयोगकी नियुक्ति की गई। उसके एक आयुक्त श्री सांडर्सने अपनी अतिरिक्त रिपोर्टमें कहा है :

यद्यपि आयोगने ऐसा कानून बनाने की कोई सिफारिश नहीं की कि अगर भारतीय अपने गिरमिटको अवधि पूरी होनेके बाद नया इकरार करने को तैयार न हों तो उन्हें भारत लौटने के लिए बाध्य किया जाये, फिर भी मैं ऐसे किसी भी विचारकी जोरोंसे निन्दा करता हूँ। मेरा पक्का विश्वास है कि आज जो अनेक लोग इस योजनाकी पैरोकारी कर रहे हैं, वे जब समझेंगे कि इसका अर्थ क्या होता है तब वे भी मेरे समान ही जोरोंसे इसे ठुकरा देंगे। भले ही भारतीयोंका आना रोक दीजिए और उसका फल भोगिए, परन्तु ऐसा-कुछ करने की कोशिश मत कीजिए जो, मैं साबित कर सकता हूँ, भारी अन्याय है।

यह इसके सिवा क्या है कि हम अपने अच्छे और बुरे, दोनों तरहके नौकरोंका ज्यादासे-ज्यादा लाभ उठा लें और जब उनकी अच्छीसे-अच्छी उम्र हमें फायदा पहुँचाने में कट जाये तब—अगर हमारे वशमें हो तो, मगर है नहीं—उन्हें अपने देश लौट जाने के लिए बाध्य करें और इस प्रकार उन्हें अपने पुरस्कारका सुख भोगने से वंचित कर दें? और आप उन्हें भेजेंगे कहाँ? उन्हें उसी भुखमरीको परिस्थितिको झेलने के लिए फिर क्यों वापस भेजा जाये, जिससे अपनी जवानीके दिनोंमें भागकर वे यहाँ आये थे? अगर हम शाइलॉकके समान एक पौंड मांस ही चाहते हैं, तो विश्वास रखिए, शाइलाकका ही प्रतिफल भी हमें भोगना होगा।

उपनिवेश भारतीयोंके आगमनको जरूर रोक सकता है, और 'लोकप्रियताके दीवाने' जितना चाहेंगे उससे कहीं अधिक सरलताके साथ और स्थायी रूपमें रोक सकता है। परंतु सेवाके अंत में उन्हें जबरन निकाल देना उसके वशको बात नहीं है। और मैं उससे अनुरोध करता हूँ कि इसकी कोशिश करके वह एक अच्छे नामको कलंकित न करे।

जिस महान्यायवादीने विचाराधीन विधेयकको पेश किया था, उसने आयोगके सामने गवाही देते हुए ये विचार व्यक्त किये थे :