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माण में सूतका उत्पादन करनेके लिए हमें १ करोड़ २० लाख तकुए [ चरखे ] चाहिए । जूनके अन्ततक कांग्रेस तो केवल ३० लाखकी, अर्थात् समूची आवश्यकताके मात्र छठे भागकी ही अपेक्षा कर रही है। ऐसी आशा करना बहुत गलत नहीं होगा कि यदि हम तीन महीने में २० लाख चरखे चालू करनेमें सफल हो सकें तो उससे आन्दोलनको ऐसी गति मिलेगी, जिससे बिना अधिक प्रयत्नके ही आगामी तीन महीनोंमें चरखोंकी संख्या दुगनी हो जायेगी । हमारे देशमें प्रति परिवार ६ सदस्योंवाले करीब ५ करोड़ परिवार हैं। अतः समस्या परिवारोंकी इस बड़ी संख्यामें से केवल २० लाख परिवारों तक पहुँचनेकी ही है ।

यदि वर्तमान कार्यकर्त्ताओंका चरखेमें वैसा ही विश्वास है जैसा मेरा है, तो उन्हें कातना और चरखेकी बनावट समझ लेना चाहिए जिससे वे अच्छे चरखे और खराब चरखेमें भेद कर सकें। उन्हें किसी भी हालत में ऐसे चरखेका प्रवर्तन नहीं करना चाहिए, जो गत दिनांक ६ के अंकमें निर्देशित कसौटियोंपर खरा नहीं उतरता । यह तो बताना आवश्यक भी नहीं है कि कार्यकर्त्तागण यदि स्वयं धर्म मानकर विदेशी कपड़ा पहनना बन्द नहीं कर देते तो लोगोंपर उनका प्रभाव नहीं पड़ेगा - • पड़ा भी तो बहुत ही कम । यदि स्वयं हमने इसका तुरन्त श्रीगणेश करके उदाहरण प्रस्तुत न किया तो वर्ष पूरा होते-होते तक विदेशी कपड़ेका पूर्ण बहिष्कार सम्भव नहीं होगा । एक ही बड़ा काम ठीक ढंगसे और ईमानदारीसे सम्पन्न किया जाये, तो उसके फलस्वरूप हमें अवश्य ही विश्वास, आशा और साहस प्राप्त होता है ।

करोड़ रुपये का उपयोग

मुझे बताया गया है कि एक अखबारने यह प्रश्न किया है,: कांग्रेस एक करोड़ रुपयोंका क्या करेगी ? उत्तर स्पष्ट है: 'रुपया कांग्रेसके प्रस्तावमें निर्देशित कार्यके लिए काममें लाया जायेगा । अर्थात्, अहिंसात्मक असह्योगके द्वारा स्वराज्य प्राप्त करनेके लिए। जिनमें आर्थिक व्ययकी आवश्यकता पड़ेगी वे काम हैं: कताईका काम, राष्ट्रकी सेवाके संगठनका काम, कहीं-कहीं उन वकीलोंके भरण-पोषणका काम, जिन्होंने वकालत बन्द कर दी है किन्तु जो राष्ट्रीय सेवामें नहीं खपाये जा सकते; और राष्ट्रीय शिक्षण संस्थाओंको चलानेका काम । किन्तु इनमें से अन्तिम तीनों कार्य भी कताईसे ही जुड़े हुए हैं, क्योंकि यदि हमें इस वर्षके अन्तसे पहले-पहले ही विदेशी कपड़ेका पूर्ण बहिष्कार सम्पन्न करना है तो समस्त कार्यकर्त्ताओं, स्कूलों तथा कालेजोंको मुख्यतः हाथकी कताई और बुनाईमें ही जुटे रहना चाहिए। मेरी समझमें अखिल भारतीय तिलक स्मारक - स्वराज्य कोषके खर्चकी मदें यही हैं । कोषका पचहत्तर प्रतिशत भाग उसे एकत्र करनेवाले प्रान्तके नियन्त्रणमें रहेगा । और अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी द्वारा दिये गये निर्देशोंके अन्तर्गत, प्रान्तोंको स्वराज्य-प्राप्तिके लिए उसका उपयोग करनेके सम्बन्धमें निर्णयकी निर्बाध स्वाधीनता रहेगी।

विस्मयजनक भ्रान्तियाँ

गुजराती में एक आम कहावत है 'नामी साह कमा खाय, नामी चोर मारा जाय । ' मैं चाहे सुधारक माना जाऊँ, चाहे अपराधी, किन्तु मैं अपने आपको अत्यन्त विचित्र