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टिप्पणियाँ

टिप्पणियाँ ५६३ जो राष्ट्र द्वारा अपनी प्रतिनिधि संस्थाओंके माध्यमसे अपनाया गया है। चौथे, आखिर श्री रजा अलीका असहयोगके स्थगनसे अभिप्राय क्या है ? क्या खिताबधारी लोग कुछ समय के लिए अपने खिताब पुनः धारण कर लें ? या वकील फिरसे वकालत करना शुरू कर दें ? क्या लड़के सरकारी स्कूलोंमें लौट जायें; कातनेवाले अपने चरखे एक कोनेमें रख दें; बढ़ई नये चरखे बनाना बन्द कर दें ! और क्या पियक्कड़ लोग ठेके- वालोंसे फिर जान-पहचान बढ़ाना शुरू करें ? क्या श्री रजा अली चाहते हैं कि राष्ट्रीय स्कूल कुछ समय के लिए अपने दरवाजे बन्द कर दें ? बात चाहे कितनी ही बेतुकी लगे, इतना स्पष्ट है कि श्री रजा अली असहयोगकी मर्यादाओंको नहीं समझे हैं; वे नहीं समझते कि असहयोग एक सद्गुणके समान है जिसका आचरण इच्छा होते ही जब चाहे बन्द नहीं किया जा सकता । यदि अंग्रेज जो अपने भरण-पोषणके लिए भारतपर आश्रित हैं सचमुच भारतका भला चाहते हैं, हमारा नमक अदा करना चाहते हैं, तो उन्हें शराबके धन्धेके खत्म हो जाने, तथा विदेशी कपड़ेके धन्धे और इसके फलस्वरूप लंकाशायरके कपड़े धन्धेके भी पूर्ण विनाशको सहन कर लेना चाहिए । खिलाफत पूरी तरह सुरक्षित हो जाये और पंजाबके घाव भर जायें, इसके बाद भी शराबकी आमदनी पुनर्जीवित नहीं की जा सकेगी, न विदेशी कपड़ोंका इस्तेमाल फिरसे शुरू किया जायेगा । आश्चर्यकी बात तो यह है कि देशमें ऐसे बुद्धिमान और शिक्षित सार्वजनिक कार्यकर्ता हैं जो इतना भी नहीं समझ पाते कि यह सरकार जबतक अपने मूलभूत पापोंको धो नहीं डालती तबतक उसे बराबर एक अन्यायके बाद दूसरा अन्याय करना ही होगा। इसमें सन्देह नहीं कि वह चाहे तो उक्त दो अन्यायोंका निवारण किये बिना भी, दो बड़े-बड़े गतिशील आन्दोलनोंमें जनताके साथ सहयोग कर सकती है अर्थात् शराब की बुरी लतके खिलाफ युद्धमें तथा चरखेकी उस प्राचीन प्रतिष्ठा और पवित्रताकी पुनः स्थापनामें । इससे उन दोनों अन्यायोंसे उत्पन्न कटुता हल्की पड़ जायेगी । किन्तु जनता के साथ सरकार के ऐसे सहयोग से जनताकी उन दोनों अन्यायोंका निश्चित रूपसे निवारण करा लेनेकी शक्ति बढ़ जायेगी, और इसीलिए सरकार शान्तिके साथ मद्यनिषेध अभियानकी तथा चरखेके माध्यमसे स्वदेशी वस्त्र निर्माणकी वृद्धिके फलस्वरूप विदेशी कपड़े के बहिष्कारकी प्रगति नहीं होने देगी ।

कार्यकर्त्ता, धन और साधन

श्री दासने इन्हीं शब्दोंमें एक करोड़ सदस्य, एक करोड़ रुपये और बीस लाख चरखेवाले अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटीके प्रस्तावका सार रख दिया था। कार्यक्रम न तो विस्तृत है, न पेचीदा। इसके लिए लगभग किसी त्यागकी आवश्यकता नहीं । हाँ, इसके लिए संगठन, इच्छा और उद्यम शीलताकी जरूर आवश्यकता है । हमारे पास २१ कांग्रेसी प्रान्त हैं, और सौभाग्यसे हर प्रान्तमें ऐसे कार्यकर्त्ता हैं, जो कांग्रेसके कार्यक्रमके लिए अपने-अपने प्रान्तको संगठित कर सकते हैं। मैं आग्रह करूँगा कि वे सदस्य भरती करने, चन्दा एकत्र करने तथा घर-घरमें चरखेका प्रवेश कराने के काममें जुट जायें। कार्यकर्त्ता भूलें नहीं कि अब नष्ट करनेके लिए समय नहीं रहा । अपने-अपने प्रान्तमें

१. पंजाब और खिलाफतके अन्याय ।