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२७०. टिप्पणियाँ

दक्षिण आफ्रिकामें भारतीय

सर बेंजामिन रॉबर्टसनके मिशनके बावजूद, दक्षिण आफ्रिकी आयोगने[१] प्रतिकूल निर्णय दे दिया है। जैसा कि लॉर्ड मॉर्लेने[२] बहुधा कहा है, इस प्रकारके आयोग कोई उपयोगी हेतु सिद्ध नहीं करते। वे झूठी आशाओंको जन्म देते हैं, और वे कुछ समयके लिए जनताका ध्यान उन विषयोंसे ही हटा देते हैं जिनपर विचार करनेके लिए उनकी नियुक्ति की जाती है। वे समय दे देते हैं कि आवेश ठंडा पड़ जाये; किन्तु न्याय वे क्वचित् ही करते हैं। वस्तुतः आयोग शुद्ध न्यायसे मुँह चुरानेके लिए प्रसिद्ध हैं। वे समझौता करते हैं; या समझौतेका प्रस्ताव प्रस्तुत करते हैं। किन्तु दक्षिण आफ्रिकी आयोगने न तो समझौतेका कोई प्रस्ताव किया, न समझौता किया। उसने व्यापारके मामलेमें भार- तीयोंको उनके गोरे प्रतिद्वन्द्वियोंके हाथों सौंप दिया है। जैसा कि श्री सी० एफ० एन्ड्रयूज बहुधा कहते हैं, उसने गोरोंकी श्रेष्ठताके सिद्धान्तको पुनः दृढ़ताके साथ घोषित किया है। इस सिद्धान्तको वे धर्म मान बैठे हैं और उसके पीछे मतवाले हो गये हैं। १९०१ में स्वर्गीय सर फीरोजशाहने मुझे दक्षिण आफ्रिकापर, उनके शब्दोंमें, 'अपना समय नष्ट करनेके लिए' फटकार बताई थी । सत्याग्रह-अभियानके समय, जैसा कि उन्होंने स्वयं कहा था, उनमें कोई उत्साह उत्पन्न नहीं हुआ था। और जब उनमें उत्साह जाग्रत हुआ, तो वह विषयकी न्याय्यताके कारण नहीं (जिसके बारेमें उन्हें कभी सन्देह नहीं था ) वरन् श्रीमती गांधीके कारावासके[३] कारण; जिसने नारी जातिके प्रति उनकी सम्मानकी भावनाको जगा दिया, और इसीसे वे संघर्षमें उतर पड़े। वे कहा करते थे कि मुझे भारत लौट आना चाहिए, और दक्षिण आफ्रिकाके मुट्ठी-भर भारतीयोंके लिए काम करनेके बजाय समूचे भारतकी स्वतन्त्रताके लिए उद्योग करना चाहिए ।

मैं तब सोचता था, जैसा कि आज भी सोचता हूँ, कि बम्बई अहातेके वे बेताजके बादशाह[४] यद्यपि भारतकी स्वतन्त्रता प्राप्तिपर अपना ध्यान केन्द्रित करनेके बारेमें ठीक कहते थे, तथापि उनका यह सोचना गलत था कि मुझे दक्षिण आफ्रिकासे लौट आना चाहिए था। हम अपने प्रवासी देशवासियोंकी उपेक्षा नहीं कर सकते। भारतकी स्वत- न्त्रताका युद्ध इस बातकी अपेक्षा करता है कि हम अपने छोटेसे-छोटे देशवासियोंके अधि- कारोंकी रक्षा करें, फिर चाहे वे कहीं भी रहते हों। किन्तु इस समय तो मैं दक्षिण आफ्रिकाके अपने देशभाइयोंसे यही कहूँगा कि वे अपना युद्ध वीरतापूर्वक अपने ही



  1. १. दक्षिण आफ्रिकी सरकार द्वारा नियुक्त एशियाई जाँच आयोग, जिसका कार्यकाल मार्चसे जुलाई १९२० तक था; सर बेंजामिन रॉबर्टसनने भारत सरकारकी ओरसे उसके कार्यमें सहायता की थी ।
  2. २. जॉन मॉर्ले, ब्लेकवर्नके वाइकाउंट मॉर्ले ( १८३८-१९२३); भारत-मन्त्री १९०५-१० ।
  3. ३. दक्षिण आफ्रिकामें १९१३ में। देखिए खण्ड १२, पृष्ठ १८४ व २०२ ।
  4. ४. सर फीरोजशाह मेहता ।