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भाषण : मसूलीपट्टमकी सार्वजनिक सभामें


ध्येय ही मानें और अपने ध्येयोंको पूर्ण बनानेके लिए इसे पूर्णता प्रदान करें। मुझे यह जानकर आश्चर्य तथा दुःख हुआ कि आपके नगरकी दो बड़ी शिक्षा-संस्थाओंसे एकने भी इस विशाल विद्यालयका समर्थन नहीं किया। मैंने आशा की थी कि असहयोग आन्दोलनके फलस्वरूप मसूलीपट्टम हाईस्कूल तथा कालेजके विद्यार्थी अपने स्कूलोंसे उसी तरह ऊब उठे होंगे तथा निराश हो गये होंगे जैसे समस्त भारतके विद्यार्थी इस सर- कारकी छत्रछायामें पलनेवाली संस्थाओंसे हो गये हैं। मैंने ऐसी आशा की थी कि कमसे-कम इस प्रकारके विद्यार्थी तो इस विद्यालयमें पहुँचेंगे ही । अन्य स्थानोंमें मुझ से विद्यार्थियोंने पूछा है कि उन्हें कहाँ जाना चाहिए, क्योंकि राष्ट्रीय संस्थायें हैं ही नहीं। मसूलीपट्टमके विद्यार्थियोंके लिए इस प्रकारका कोई भी बहाना नहीं है, क्योंकि उनके बीच एक ऐसा विद्यालय लगभग १५ सालसे काम कर रहा है। यदि आप बहादुर विद्यार्थी हैं तो मेरी बात जरूर मानेंगे । आप लोगोंको इस स्कूलमें दाखिल हो जाना चाहिए और इस विद्यालयके विद्यार्थी होनेकी हैसियतसे यदि आप इसमें कोई ऐसी कमी देखें जिसके कारण आपके मस्तिष्क और हृदयकी भूख नहीं मिट सकती तो आप अपने शिक्षकोंसे उस कमीको दूर करनेका अनुरोध करें।

कल पुनीत राष्ट्रीय सप्ताह प्रारम्भ हो रहा है । ६ अप्रैल, १९१९ के दिन भारत जागा था । ६ अप्रैल, १९१९ ने एक जगे हुए भारतको देखा था। उस दिन हिन्दू और मुसलमान दोनों ही जातियोंने एकताकी वास्तविक इच्छा प्रदर्शित की थी। उसी दिन सच्ची स्वदेशीकी भावना भी जगी थी। उसी महान् दिवसके ठीक सात दिन पश्चात् अर्थात् १३ अप्रैलको वह खूनी रविवार आया जिसमें जलियाँवाला बागमें लगभग १,५०० निर्दोष व्यक्तियोंकी हत्या कर दी गई और फिर हत्यारोंने घायलोंकी जरा भी चिन्ता नहीं की। मेरे आसपास बैठे हुए आप सभी विद्यार्थियों, वकीलों तथा स्त्रियोंसे मैं यह कहता हूँ कि वे जलियाँवाला बागमें एक असहाय, एकाकी, बहादुर, शरीफ और कुलीन उस महिला रतनदेवीकी कल्पना करें जो अपने मृत पतिकी लाशपर रो रही है और निडर होकर जनरल डायरके हुक्मोंका उल्लंघन करती हुई अपने प्राणपतिका शीश अपनी गोदमें रखे हुए है। रतनदेवी आप लोगोंकी बहन थी और मेरी भी । सोचिए कि जलियाँवाले बागके उस वीरान मैदानमें यदि आप रतनदेवीकी जगह होते तो आपको कैसा लगता । मैं नहीं चाहता कि आप लोगोंके मनमें अंग्रेजोंके प्रति क्रोध भड़के, लेकिन मैं यह जरूर चाहता हूँ कि आप लोग गहराईसे विचार अवश्य करें। हमने इस पवित्र सप्ताहका प्रारम्भ और समाप्ति व्रत, प्रार्थना तथा हड़तालसे करना तय किया है। मैं आशा करता हूँ कि आप लोग मसूलीपट्टमके नागरिक कल निराहार रहेंगे, प्रार्थना करेंगे तथा हड़ताल मनायेंगे। उपवास हमारी बहुत प्राचीन पद्धति है। जब हम अपने भीतर कुछ अपवित्रता या कलुश पाते हैं तब उपवास करते हैं। हम अपने पिछले पापोंके प्रायश्चित्तस्वरूप भी उपवास करते हैं तथा परमात्मासे प्रार्थना करते हैं कि वह हमें शक्ति प्रदान करे और हमारे पापोंको क्षमा करे। प्रार्थ- नाके बाद हम अपने जीवनका एक नया पृष्ठ प्रारम्भ करते हैं। इसलिए मैं आशा करता हूँ कि आपमें से हरएक जो यहाँ उपस्थित है, इन दो जरूरी बातोंको नहीं भूलेगा। मैं कल और आगे सप्ताह-भर हड़तालको एक धार्मिक कृत्य मानूंगा। इसका