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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय


शरीरमें ऐसी व्याप्त नहीं होती, इतना ही नहीं बल्कि उसका उपाय भी आसान है । उन्हें अगर हम अपना बना लें तो वे अवश्य साफ रहने लगें ।

डाक्टरका धन्धा निरन्तर मैल साफ करनेका ही है। उन्हें अगर चौबीस घंटे चीर-फाड़का काम मिले तो वे उसे करनेसे इनकार नहीं करेंगे। इसके अतिरिक्त वे भी अपनी आजीविका अर्जित करनेके लिए ही मैल साफ करनेका अपना धन्धा करते हैं । तथापि उस कार्यको हम परोपकारपूर्ण गिनते हैं और डाक्टरको सम्मान देते हैं। मेरी दलील यह है कि डाक्टरका धन्धा सिर्फ रोगीके लिए उपकारक है, लेकिन भंगीका धन्धा समस्त संसारके लिए उपकारक होने के कारण डाक्टरके धन्धेकी अपेक्षा अधिक आवश्यक और पवित्र है । डाक्टर अपने धन्धेको छोड़ दें तो केवल रोगियोंका ही नाश होगा लेकिन यदि भंगीका धन्धा बन्द हो जाये तो जगत्का नाश हो जाये । इसलिए इस कथनमें कुछ भी अनुचित नहीं कि ऐसा आवश्यक कार्य करनेवाले व्यक्तिको अपवित्र मान और उसका परित्याग करनेमें घोर पाप है।

भंगी- चमारसे उसका धन्धा छुड़वानेकी कोशिश करना तो मैं जगत्के लिए बहुत हानिप्रद कार्य समझता हूँ ।

हमारे पास एक ही उपाय है। जैसे डाक्टरके धन्धेको हमने पवित्र मान लिया है वैसे ही भंगी-चमारके धन्धेको भी पवित्र मानें। हम उन्हें स्वच्छ रहनेके लिए प्रेरित करें, उन्हें अपनेसे दूर करनेकी बजाय उन्हें अपने समीप लायें और उनकी सेवा करें। हम अपने पाखानोंको साफ रखनेकी आदत डालें और जरूरत जान पड़े तो उसे स्वयं साफ करनेके लिए तैयार रहें और साफ करना सीखें। जब हम भंगीके धन्धेकी पवित्रताको समझने लगेंगे तब हमारे पाखाने, जो आज नरक-कुण्डके समान हैं, हमारी रसोई अथवा हमारी बैठकके समान स्वच्छ होंगे। मेरी दृढ़ मान्यता है कि भंगीको और उसके धन्धेको तुच्छ मानकर हमने अनेक रोगोंको स्थान दिया है। ब्राह्मणों के घरोंको मैंने भंगीके घरोंकी अपेक्षा अधिक गन्दा पाया है। भंगीके घरके पास पाखाना नहीं होता इसीसे वह स्वच्छ लगता है। हमारे पाखानोंकी गन्दगीसे और हमारी तत्स- म्बन्धी बुरी आदतोंके कारण प्लेग, हैजा आदि रोग तुरन्त ही फैल जाते हैं, ऐसी अनेक विद्वान् डाक्टरोंकी मान्यता है। मुझे तो इस बातका विशेष रूपसे अनुभव हुआ है। अपने पाखानोंको हम ऐसी हालतमें रख सकते हैं जिससे उन्हें साफ करनेमें तनिक भी घिन नहीं आये और जब उनमें प्रवेश करें तब वे हमें स्वच्छ और दुर्गंध-रहित लगें । अस्पृश्यताके पापके कारण ही हम साम्राज्यके अस्पृश्य, साम्राज्यके भंगी बन गये हैं। इतना ही नहीं, बल्कि उस पापके कारण हम रोगी भी बन गये हैं और हमारे शरीर निस्तेज और दुर्बल हो गये हैं। पाखाना आदिसे सम्बन्धित हमारी आदतोंके कारण हवापर कितना खराब असर होता है और खराब हवाका असर शरीरपर कितना खराब होता है इसका हमें खयाल ही नहीं है। फुरसत मिलनेपर मैं इस विषयका विस्तृत विवेचन करना चाहता हूँ ।

मुझे मलिनताके प्रति मोह नहीं है और न भंगीके प्रति । मुझे अतिशयोक्तिकी आदत नहीं है। मैं हिन्दू-शास्त्रोंको माननेवाला हूँ, हिन्दूधर्मका अभिमानी हूँ। मेरा सत्य मुझे निर्मोह रखता है और शास्त्रके नामपर चलनेवाली सब वस्तुओंको आँखें मूँदकर Gandhi Heritage Portal