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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय


और साम्राज्य में स्वयं हमारा दर्जा कोढ़ियोंका बन गया है। मैं अनुभवके आधारपर कह रहा हूँ और मैं आपको विश्वास दिलाता हूँ कि हिन्दू धर्ममें किसी भी मनुष्यके साथ उसे अस्पृश्य मानकर व्यवहार करनेकी अनुमति नहीं है। अपने धर्मको जानने और तदनुसार आचरण करनेवालेकी दृष्टिमें शूद्र उतना ही पवित्र है जितना एक ब्राह्मण । 'भगवद्गीता' में कहींपर यह नहीं कहा गया कि चाण्डाल किसी प्रकार भी ब्राह्मण- से कम है। जिस क्षण किसी ब्राह्मणको दर्प हो जाता है और जब वह अपनेको श्रेष्ठ समझने लगता है उसी क्षण वह अपने ब्राह्मणत्वको खो देता है। भारत उन ब्राह्मणोंका अत्यधिक ऋणी है जिन्होंने सबकी भलाईके लिए स्वेच्छया अपनेको बलिदान कर दिया । वे ब्राह्मण ही थे जिन्होंने ईश्वरको दासानुदास और पतितपावनके नामसे विभूषित किया है। वे ब्राह्मण ही थे जिन्होंने यह सिखाया है कि यदि वेश्या और चाण्डालतक अपने हृदयको शुद्ध कर लें तो वे मोक्ष प्राप्त कर सकते हैं ।

किन्तु मानव जातिकी बदनसीबीसे अन्य मानवोंकी तरह ब्राह्मणमें भी वे दुर्बलतायें आ गई हैं जो सबमें हुआ करती हैं। अन्य लोगोंकी तरह उसने भी अपने कर्त्तव्यकी — अर्थात् मानव जातिको ज्ञान प्रदान करने तथा उन्हें ठीक तथा प्रशस्त मार्गकी ओर ले जानेकी — अवहेलना की। हम अंग्रेजोंपर प्रगल्भ होनेके साथ उद्धत और मगरूर होनेका आरोप लगाते हैं। उनपर कीचड़ उछालनेसे पहले हमें अपनेको ऐसा बना लेना चाहिए कि हमपर कोई अँगुली न उठा सके। हमें पहले अपने ही घरको व्यवस्थित करना चाहिए ।

मैं वर्णाश्रम धर्ममें विश्वास करता हूँ। किन्तु आज उसके नामपर जो कुछ हमारे सामने हैं वह उसकी विडम्बना मात्र है। वर्णाश्रमधर्म समानताकी ओर ले जाने- वाला प्रशस्त मार्ग है। यह आत्म-सुखका नहीं, आत्मत्यागका धर्म है। यह दर्पका नहीं, विनम्रताका धर्म है। इसलिए जहाँ हमारी कुछ कमजोरियाँ ऐसी हैं जो मेरे रोंगटे खड़े कर देती हैं और मुझे निराश बनाती हैं वहाँ मैं निराशाके अन्धकारमें आशारूपी प्रकाशकी अनेक किरणें भी देखता हूँ ।

आत्मामें हलचल मचा देनेवाली जिन अनुभुतियोंसे भारत गुजरा है उनमें इस आन्दोलनका आध्यात्मिक स्वरूप ही सर्वाधिक अन्तःप्रेरक है । आप लोगोंसे मेरा निवेदन है कि आप जुआ खेलना छोड़ दें, मादक द्रव्योंका उपयोग करना, तथा इसी प्रकारके अन्य व्यसनोंको छोड़ दें। मुझपर विश्वास रखें कि जब हम ऐसा कर लेंगे तब पृथ्वीकी कोई भी शक्ति हमारे मार्गको अवरुद्ध नहीं कर सकेगी।

आपका ध्यान हिन्दू-मुस्लिम एकता तथा अहिंसाकी ओर तो मैं खींचता ही रहता हूँ। मुझे आशा है कि ये बातें अब हम सबके निकट एक अटल सिद्धान्तके रूपमें मानी जाने लगी हैं।

हिन्दूका किसी मुसलमानसे लड़ना और मुसलमानका किसी हिन्दूसे लड़ना स्वराज्यकी आशापर पानी फेरना है। हिन्दुओं और मुसलमानोंके बीच एकता स्थापित करनेका अर्थ है खिलाफत और पंजाबपर किये गये अत्याचारोंका प्रतिकार कराना ।

हमारे लिए तलवार उठानेका अर्थ है उसके द्वारा अपना ही सर्वनाश कर लेना । विरोधियों या अंग्रेजोंके खिलाफ हमारी जबानसे एक भी क्रोध-भरा शब्द न निकलने