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२५७. भाषण : कांग्रेस सभा सम्बन्धी प्रस्तावपर[१]

बेजवाड़ा
१ अप्रैल, १९२१

महात्मा गांधीने प्रस्ताव पेश करते हुए कहा : हो सकता है कि प्रस्तावको लागू करना कठिन और अरुचिकर हो, किन्तु नये संविधानको रूप देनेवालोंका कर्त्तव्य है कि वे ऐसी कठिनाइयोंका सामना करें और उनपर विजय पायें। आज देशकी जनता और कांग्रेसजनोंका बहुमत असहयोगके पक्षमें है। इसे देखते हुए मुझे तो लगता है कि कांग्रेस संगठनोंका कार्य संचालन और नियन्त्रण ऐसे लोगोंके हाथोंमें न रहने देना ही उचित होगा जो नागपुर अधिवेशनके प्रस्तावके अनुसार असहयोगपर व्यक्तिगत रूपसे अमल करनेके लिए तैयार न हों।

[ अंग्रेजीसे ]

हिन्दू, ४-४-१९२१

२५८. पत्र: मगनलाल गांधीको

[ कोकोनाडा ]
शनिवार [२, अप्रैल, १९२१][२]

चि० मगनलाल,

गांडीव चरखेके सम्बन्ध में तुमने 'नवजीवन' में जो टिप्पणी लिखी है उसे पढ़कर प्रसन्नता हुई। और क्या शंकरलालका हिसाब भी इसी तरह ठीक नहीं हो सकता?[३] मैंने उनसे [ तुम्हारी टिप्पणीके बारेमें ] पूछा था। वे बोले "मगनलालजीने जो उक्ति पेश की है वह अभी मेरे गलेके नीचे नहीं उतरी है। मैंने अपने चरखेपर ढेरों सूत काता है और दूसरोंसे कतवाया है। मैं अपने चरखेसे आश्रमके चरखेके बराबर ही काम ले रहा हूँ। मैं तो केवल इतना ही चाहता हूँ कि मेरे पास जिस नमूनेका चरखा है उसे आप निकम्मा न ठहरा दें। फिलहाल मैं और कुछ नहीं चाहता।"


  1. १. प्रस्ताव यह था कि नये संविधानके अन्तर्गत संगठित की जानेवाली कांग्रेस सभाओंमें कोई भी ऐसा व्यक्ति पदाधिकारी नियुक्त न किया जाये जो असहयोग सम्बन्धी प्रस्तावकी शर्तों, विशेषकर व्यक्तिगत अपेक्षाओं को पूरा न करता हो ।
  2. २. इस पत्र में गांडीव चरखेपर उल्लिखित टोका २७-३-१९२१ के नवजीवन में प्रकाशित हुई थी और जैसा कि उपरोक्त पत्र में कहा जा चुका है गांधीजी १० अप्रैल, १९२१ को बम्बई तथा १२ अप्रैलको अहमदाबाद पहुँचे थे ।
  3. . मगनलालने उसके सम्बन्ध में अपनी राय बदल दी। उन्होंने लिखा कि शंकरलालजीके चरखेपर परीक्षण किये और उसे ठीक पाया । इस प्रकारके चरखेको लागत डेढ़ रुपया आती है ।