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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय


प्रणाली तभीतक चल सकती है, जबतक हम उसे मुकदमा चलानेका कोई मामूली-सा बहाना भी देकर इस प्रकार उसे सम्माननीयता प्रदान करते रहें अथवा उसके प्रति अपना लगाव रखें या रखनेका दिखावा करते रहें।

अँगूठे किसने काटे थे ?

यदि चरखा रखनेको सरकार अपराध मानती है, तो यह इतिहास में कोई पहला अवसर नहीं है। ईस्ट इंडिया कम्पनीके शासनकाल में सूत कातना या वस्त्र बुनना लग- भग अपराध बन गया था। इन कारीगरोंसे इतनी निर्दयतापूर्वक और इतना अधिक काम कराया जाता था कि वे [कभी कभी] कारावाससे बचनेके लिए अपने अँगूठे स्वयं काट डालते थे। कई वक्ता तथ्योंकी गड़बड़ी कर देते हैं और कहते हैं कि कम्पनीके नौकरोंने कारीगरोंके अँगूठे काटे । मेरी रायमें, यह तो उस आतंककी अपेक्षा कम निर्दयतापूर्ण होता जिससे बचनेके कारीगरोंको अपने हाथों अपने अंगूठे काटने पड़े थे।

सफेद टोपी, एक अपराध

शराबसे परहेज करनेको अपराध बना देना, सफेद टोपी पहननेको अपराध बनाने से बस एक ही कदम पीछे होगा। फिर भी मैंने जबलपुरमें सुना[१] कि वहाँ रेलवेके एक विभागके कर्मचारियोंको सफेद टोपी पहननेकी मनाही की गई थी।

क्रान्तिकारी

और क्या संयुक्त प्रान्तकी सरकारने आन्दोलनको क्रान्तिकारी नहीं कहा है ?[२] अभीतक 'क्रान्ति' शब्द हिंसासे सम्बद्ध रहा है, और इसलिए प्रतिष्ठित सत्ता द्वारा निन्दित होता आया है। किन्तु असहयोग आन्दोलन — यदि उसे एक क्रान्ति माना जा सकता है, तो — सशस्त्र विद्रोह नहीं, वह विकासशील क्रान्ति है, रक्तहीन क्रान्ति ! यह आन्दोलन वैचारिक क्रान्तिका आन्दोलन है। असहयोग शुद्धीकरणकी प्रक्रिया है, और इसलिए वह हमारे विचारों में क्रान्ति लाता है। अतः उसका दमन बलपूर्वक सहयोग प्राप्त करके ही किया जा सकेगा। आन्दोलनको भंग करनेके लिए जो आज्ञाएँ निकाली जायेंगी, वे आज्ञाएँ होंगी चरखेका प्रवर्तन रोकने अथवा उसमें बाधा पहुँचानके लिए, मद्य-निषेधके आन्दोलनको निषिद्ध करनेके लिए और इस प्रकार लोगोंको हिंसाके लिए उकसानेके लिए; क्योंकि यह निश्चित है कि यदि अप्रत्यक्ष तरीकोंसे विदेशी कपड़ेके उपयोग अथवा शराब खरीदने के लिए लोगोंको बाध्य करनेका कोई प्रयत्न किया गया तो अवश्य ही लोग बहुत असन्तुष्ट हो जायेंगे। किन्तु यदि हम रोषको पी जायें और


  1. १. गांधीजी २१ मार्च १९२१ को जबलपुरमें थे और वहीं उन्होंने यह खबर सुनी थी ।
  2. २. संयुक्त प्रान्तके गवर्नर, सर हारकोर्ट बटलरने मार्च, १९२१ में एक भाषण में कहा था कि असहयोग आन्दोलन अब एक क्रान्तिकारी आन्दोलनके रूपमें सामने आ रहा है वह "लोगोंके अज्ञानका लाभ उठा कर जनताको उकसा रहा है। "